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.] श्रीप्रवचनसारं भाषाटीका। नमसे नित्यपना है वो भी पर्यायार्थिक नयसे उत्पाद व्यय प्रौव्य तीनों हैं।
भावार्थ-प्राचार्यने इस गाथामें यह सिद्ध किया है कि शुद्धोपयोगके फलसे जो शुद्ध अवस्था होजाती है वह यद्यपि सदा बनी रहती है तथापि द्रव्य लक्षणसे गिर नहीं जाती है। द्रव्यका लक्षण सत् है, सत् है सो उत्पाद व्यय प्रौव्यरूप है तथा द्रव्य गुण पर्यायवान है। यह लक्षण हरएक द्रव्यमें हरसमय पाया जाना चाहिये अन्यथा द्रव्यका अभाव ही होनायगा। म. शुद्ध जीवमें तो हम देखते हैं कि कोई जीव मनुष्य पर्यायके त्यागसे देव पर्यायरूप होजाता है, पर आत्मापनेसे ध्रौव्य है अर्थात् मात्मा दोनों पर्यायोंमें वही है अथवा एक मनुष्य बालंव. यके नाशसे युवावयका उत्पाद करता है परन्तु मनुष्य उपेक्षा वही है, ध्रौव्य है । इसी तरह पुद्गल मी झलकता है । लकड़ीकी पर्यायसे जब चौकीकी पर्याय बनती है तब लकड़ीका व्यय, चौकीका उत्पाद तथा जितने पुद्गलके परमाणु लकड़ीमें हैं उनका धौम्पपना है। यदि यह वात न माने तो किसी भी वस्तुसे कोई काम नहीं हो सक्का । वस्तुका वस्तुत्व ही इस विलक्षणमई सत लक्षणसे रहता है। यदि मट्टी, पानी, वायु, अग्नि कूटस्थ जैसेके तैसे बने रहते बो इनसे वृक्ष, मकान, वर्तन, खिलौने, कपड़े भादि कोई भी नहीं बन सके । जिस समय मिट्टीका घड़ा बनता है उसी समय घड़की अवस्थाका उत्पाद है घड़की, बननेवाली पूर्व अवस्थाका व्यय है तथा जितने परमाणु घड़ेकी पूर्व पर्यायमें ये उतने ही परमाणु घड़ेकी वर्तमान पर्यायमें है। यदि कुछ झड़ गए होंगे तो