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श्रीमवचनसार भापाटीका !
समावो) परिणमन स्वभावधारी ( जीवः ) यह जीव ( सुहेण ) शुभ भावसे ( वा अण) अथवा अशुभ भावसे ( परिणमदि ) परिणमन करता है तब ( सुहो असुहो ) शुभ परिणामों से शुभ तथा अशुभ परिणामोंसे अशुभ ( हवदि) होजाता है । ( सुद्धेण) जब शुद्ध भावसे परिणमन करता है ( तदा ) तब (हि) निश्चय से ( सुद्धो ) शुद्ध होता है । इसीका भाव यह है कि जैसे स्फटिक मणिका पत्थर निर्मल होनेपर भी जपा पुष्प आदि लाल, काली, श्वेत उपाधिके बशसे लाल, काला, सफेद रंग रूप परिणम जाता है तैसे यह जीव स्वभावसे शुद्धबुद्ध एक स्वभाव होनेपर भी व्यवहार करके गृहस्थ अपेक्षा यथासंभव राग सहित सम्यक्त 'पूर्वक दान पूजा आदि शुभ कायाके करनेसे तथा मुनिकी अपेक्षा मूल व उत्तर गुणोंको अच्छी तरह पालन रूपं वर्तनेमें परिणमन करने से शुभ है ऐसा जानना योग्य है। मिथ्शदर्शन सहित अविरति भाव, प्रमादभाव, कषावभाव व मन वचनकाय योगोंके इन चलन रूप भाव ऐसे पांच कारण रूप अशुमोपयोग में वर्तन करता हुआा अशुभ जानना योग्य है तथा निश्चय रत्नत्रय भई शुद्ध उपयोगसे परिणमन करता हुआ शुद्ध जानना चाहिये। क्या प्रयोजन है सो कहते हैं कि सिद्धांत में जीवके असंख्यात लोकमात्र परिणाम मध्यम वर्णनकी अपेक्षा मिथ्यादर्शन आदि १४ चौदह गुणस्थान रूपसे कहे गए हैं। इस प्रवचन सार प्राभृत शास्त्र में उनही गुणस्थानों को संक्षेपसे शुभ अशुभ तथा शुद्ध उपयोग रूपसे कहा गया है। सो ये तीन प्रकार उपयोग
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१४ गुणस्थानों में किस तरह घटते हैं सो कहते हैं । मिथ्यात्व,