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श्रीमपचनसार भाषाटीका। [२३ मुखका लाभ करूं । इसलिये ऐसे सराग चारित्रसे भी परम्परा निर्वाणका भाजन होनाता है । तौभी इन दोनोंमें साक्षात् मुक्तिका कारण वीतराग चारित्र ही उपादेय है । यह चारित्र यहां भी
आत्मानुभव करानेवाला है तथा भविष्पमें भी सदा भानन्दकारक निर्वाणका देनेवाला है। . जैसा इस गाथामें भाव यह है कि सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यग्चारित्रकी एकता निर्वाणका मार्ग है ऐसा ही कथन श्री उमास्वामी आचार्यने अपने मोक्षशास्त्रके प्रथम सूत्र में कहा है। यथा “ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।
तात्पर्य यह है कि हमको मोक्षका साधक निश्चय रत्नत्रय मई वीतराग चारित्रको समझना चाहिये और व्यवहार रत्नत्रय मई सराग चारित्रको उसका निमित्त कारण या परम्परा कारण समझना चाहिये। . उत्थानिका-आगे निश्चय चारित्रका स्वरूप तथा उसके पर्याय नामोंके कहनेका अभिप्राय मनमें धारण करके मागेका सुत्र कहते हैं-इसी तरह आगे भी एक सूत्रके आगे दूसरा सूत्र कहना उचित है ऐसा कहते रहेंगे इस तरहकी पातनिका यथासंभब सर्वत्र माननी चाहिये। चारित्तं खलु धम्मो, धम्मो जोसोसमोति णिहिहो। मोहक्खोह विहीणो,परिणामो अप्पणो हि समोथ
चारित्रं खलु धर्मो धर्मों यः स शम इति निर्दिष्टः । मोहक्षोभविहीनः परिणाम आत्मनो हि शमः ॥७॥