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श्रीमवचनसार भाषाटीका। [३७३' . मंगल श्री परहंत हैं, मंगल सिद्ध महान । मंगल साधु समूह हैं, मंगल जिन वृष जान ॥ १३ ॥ भाव द्रव्यसे नमनकर, भाव धरू यह सार। नर नारी या ग्रन्थको, पढ़ सुन हो दुःख पार ॥ १४ ॥ पहचाने निज तत्त्वको, ज्ञान स्वसुख मंडार । अनुभव करें निजात्मना, ध्यान धरै अविकार ॥ ३५ ॥
इस महान अंथ श्री प्रवचनसारके प्रथम अव्यायकी ज्ञान तत्त्वदीपिका नाम भाषाटीका मिनी फागुन सुदी १४ की रात्रिको सवेरा होते होते ५ बजे रांची प्रांत के तमाड़ पोष्टके जादोडिह ग्राममें पूर्ण की।
शुभं भवतु, कल्याण मवतु, आत्मानुभवो भवतु ।
धर्म रसिकोंका सेवक
ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद। तारीख २ मार्च १९९३ वार शुक्र वीर सं० २४४९
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॥ इति ।।