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३४२] श्रीमवचनसार भाषाटीका।
-अन्वयं सहित विशेषार्थ-(दवाणि) द्रव्य, (गुणा ) उनके सहभावी गुण व (तेसिं पज्जाया ) उन द्रव्योंकी पर्यायें ये तीनों ही (अट्ठसण्णया) अर्थके नामसे ( मणिया) कहे गए हैं । अर्थात् तीनोंको ही अर्थ कहते हैं । (तेस ) इन तीन द्रव्य गुण पर्यायोंमेंसे (गुणपज्जयाणं अप्पा) अपने गुण
और पर्यायोंका सम्बन्धी स्वभाव ( दव्वत्ति) द्रव्य है ऐसा उपदेश है । अथवा यह प्रश्न होनेपर कि द्रव्यका क्या स्वभाव है। यही उत्तर होगा कि जो गुण पर्यायोंका आत्मा या आधार है वही द्रव्य है वही गुण पर्यायोंका निभाव है। विस्तार यह है कि जिस कारणसे शुखात्मा मनन्त ज्ञान अनंत सुख आदि गुणोंको
से ही अमूर्तीकपना, अतींद्रियपना, सिद्धपना आदि पर्यायोंको इयति अर्थात् परिणमन करता है व माश्रय करता है इस लिये शुद्धात्मा द्रव्य अर्थ कहा जाता है वैसे ही जिस कारणसे ज्ञानपना गुण और सिद्धपना भादि पर्यायें अपने माघारभुत शुद्धात्मा द्रव्यको इयरति अर्थात परिणमन करती हैं-आश्रय करती हैं, इसलिये वे ज्ञानगुण व सिद्धत्व भादि पर्यायें भी मर्थ कही जाती हैं । ज्ञानपना गुण और सिद्धपना आदि पर्यायोंका जो कुछ सर्वस्व है वही उनका निज भाव स्वभाव है और वह शुद्धात्मा द्रव्य ही स्वभाव है। मथवा यह प्रश्न किया जाय कि शुद्धात्मा द्रव्यका क्या स्वभाव है तो कहना होगा कि पूर्वमें कही हुई गुणं और पर्याये हैं। जिस तरह आत्माको अर्थ संज्ञा जानना उसी तरह अन्य द्रव्योंको व उनके गुण पर्यायोंको अर्थ संज्ञा है ऐसा जानना चाहिये।