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श्रीमवचनसार भाषाटीका। [३२३ - पहचानते हैं तो भी वह आत्मतत्त्व गुरुके वचनोंके द्वारा जाना जाता है इसलिये तत्त्वज्ञानी गुरुदेव निश्चय से पूजने योग्य हैं।
रा तरह माप्त और आत्माके स्वरूपमें मूढता या अज्ञानताको दूर करने के लिये सात गाथाओंसे दूसरी ज्ञानकठिका पूर्ण की ॥ ८९ ॥ ___उत्यानिफा-आगे शुद्ध आत्माके लाभके विरोधी मोहके स्वरूप और भेदोंको कहते हैंदव्यादिएउ मूढो भायो जीवस्ल हपदि मोहोति । खुभदि लेणांछण्णो, पय्या राणे व दोन वा ॥१०॥ द्रव्याटिफोनु मूटो भापो पीयस्य भवति मोह इति । क्षुभ्यति रानारच्छन्नः प्राप राग वा दोष वा ॥ ९ ॥
लामाल्यार्थ-शुद्ध आत्मा बादि द्रव्योंके सम्बन्धमें जो अज्ञानं भाव । वह जीवके मोह है ऐसा कहा जाता है। इस मोहसे ढका हुआ प्राणी राग या वेपो प्राप्त हो कर मालित होता है।
अन्यय सहित विशेषापः-( व्यादिएस) शुद्ध आत्मा आदि मोंने उन द्रव्योके अनन्य ज्ञानादि ब अस्तित्व आदि विशेष और सामान्य गुणोंमें तथा शुद्ध मारमाजी परिणतिरूप सिद्धत्व मादि पर्यावों में मिनका यथासंभव पहले वर्णन होचुका है व जिनका भाग.मी वर्णन किया जायगा इन सर गप गुण पर्यायों में विपरीत पभिप्राय रखके ( मूढो भावो ) सत्यों में संशय उत्पन्न करनेवाला अज्ञानभाव ( जीवरस मोहोत्ति हवदि ) इस संसारी नीरके दर्शन मोइ है ( तेणोच्छण्णो ) इस दर्शन मोहसे माच्छ