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३१०] श्रीप्रवचनसार भाषाटीका ।
mmmmmmmmmmmmmmmmmmm उसका उपाय अरहंत और सिह परमात्मामें श्रद्धा जमाकर उनको नमस्कार करना, पूजन करना, स्तुति करना आदिहे । यहां गाथामें पूज्यनीय परमात्माके तीन विशेषण देकर यह बतलाया है कि वह परमात्मा उत्कृष्ट देव हैं। जिनको भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिपी व कल्पवासी देव नमन करते हैं ऐसे इन्द्र के भी जिनकी सेवा करते हैं इसलिये वे ही सम्चे महादेव हैं। जो मोक्षाफे लिये साधु पद धार यतन करे उराको यति कहते हैं उनमें बड़े श्री गणधर देव हैं। उनसे भी बड़े श्री परमात्मा हैं। इस विशेषणसे यह बतलाया है कि ये परमात्मा केवल इन्द्रोंसे ही आराधने योग्य नहीं हैं किन्तु उनकी भक्ति श्री गणवर मादिः परम . ऋपि भी करते हैं। तीसरे विशेषणसे यह बताया है कि उनमें ही तीन लोकके प्राणियोंकी अपेक्षा गुरुपना है क्योंकि जब तीन लोकके संसारी नीव अल्पज्ञानी व मंद या तीव्र कपाययुक्त हैं तथा जन्ममरण सहित हैं तब वह परमात्मा अनंतनानी, वीतरागी तथा जन्ममरपादि दोष रहित हैं। प्रयोजन यह है कि आत्मार्थी पुरुषको अन्य संसारी रागी द्वेषी देवोंकी आराधना त्यागकर ऐसे ही भरहंत व सिद्ध परमात्माका आराधन करना योग्य है ॥८॥
उत्थानिका-आगे "वत्तापावारम्म " इत्यादिसूत्रसे को कहा जा चुका है कि शुद्धोपयोगके विना मोह मादिका नाश नहीं होता है और मोहादिक नाशके विना शुद्धात्माका लाभ नहीं होता है उप्त ही शुद्धात्माके लाभके लिये अब उपाय बताते हैंजो जाणदि अरहतं, दत्तगुणतपज्जयत्तेहिं । . सो जाणादि अप्पाणं, मोहो खलु जादितस्स ल्य८६