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· ३.०६ ].
'श्रीप्रवचनसार भापाटीका |
-- वृत्तं ज्ञानस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं सदा । एकद्रव्यस्वभावत्वान्मोक्ष हेतुस्तदेव तत् ॥ - ॥ ^ HTTE है कि ज्ञानस्वभावसे वर्तन करना ही सदा ज्ञानरूप. रहना है। क्योंकि ज्ञान स्वरूपमें वर्तन करना आत्म द्रव्यका स्वभाव है इसलिये यही मोक्षका कारण है । वास्तव में शुभोपयोग मोक्षका कारण नहीं है । मोक्षका कारण शुद्धोपयोग है । अतएव सर्व विकल्प छोडकर एक शुद्ध आत्माका ही अनुभव करना समानुभवके द्वारा यह जीव शुद्ध स्वभावको प्राप्त चर लेता है ॥ ८३ ॥
उत्थानका - भागे शुद्धोपयोग के अभाव में जिस तरह के for a fire सरूपको यह भी नहीं प्राप्त करता है, उसको कहते हैं
सबसंजयमको सुही सज्मापचरणम फो दो देवो सो यत्॥८
तपयमप्रभिद्धः शुद्धः स्वर्गापवर्गमार्गकरः । अमरासुरेन्द्रस्तिो देवः को लोकशिवरस्थः ॥ ८४ ॥
सामान्यार्थ - वह देव तप सबसे सिन्ह हुआ है, ड, है, म्वर्ग व मोक्षका मार्ग प्रदर्शक है, इन्द्रोंसे पुञ्पनी तथा लोक fuerue विराजित है ।
अन्य सहित विशेषार्थ :- ( मो देवो ) वह देव (तव संगमसिद्धो ) सर्व रागादि परभावोंकी इच्छा के त्यागरू अपने स्वरूप में मान होना ऐसा जो तप तथा बाहरी इंद्रिय