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श्रीमवचनसार भाषाका । [११ " जिनवाणीका नित्य पठन करते हैं। सम्यग्चारित्रकी पुष्टताके लिये
महिंसादि १ महाव्रतोंको, ईर्या समिति आदि ५ समितियोंको तथा मनवचनकाय दंडरूप तीन गुप्तियोंको इस तरह तेरह प्रकारका चारित्र बड़ी भक्तिसे दोष रहित पालते हैं। इन नग्न दिगम्बर निर्मथोंमें जो सर्व साधुओं के गुरु होते हैं तथा नो दीक्षा शिक्षा देते हैं उनको भाचार्य कहते हैं। जो साधु शास्त्रोंके पठनपाठनको चारुरीतिसे सम्पादन करते हैं उनको उपाध्याय तथा जो इन पदोंसे बाहर हैं और यथार्थ मुनिका चारित्र पालते हैं के साधु संज्ञामें किये जाते हैं । इन तीनोंको अंतरात्मा कहते हैं-- ये उत्कृष्ट अंतरात्मा हैं । इसी साधु पदमें साधन करते करते यह जीव शुक्ल ध्यानके बग्से चार घातिया फर्म नाशकर भरहंत केवली होनाता है तथा वही महत शेष अधातिया' कर्मोका नाशकर सर्व तरह पुद्गलसे छूटकर सिद्ध परमात्मा हो जाता है-सिद्धको निकल अथवा अशरीर परमात्मा तथा महतको सकल अथवा सशरीर परमात्मा कहते हैं। हरएकमनुष्यको आत्माकी उन्नतिके लिये यथार्थ देव, गुरु, शास्त्रकी सहायताकी आवश्यक्ता है । सो इन पांच परमेष्ठियोंमें अर्हता और सिद्धको पूज्य देव और भाचार्य उपाध्याय, साधुको गुरु तथा देवके उपदेशके अनुसार स्वयं चकनेवाले और तदनुसार शास्त्ररचना करने वाले आचार्योंके रचे हुए शास्त्र ही यथार्थ शास्त्र हैं। इनमें पूज्य बुद्धि रखकर इनकी यथासंगव भक्ति करनी चाहिये। देवकी भक्ति उनकी साक्षात या उसकी प्रतिमाकी पूना स्तुति करनेसे व उनका ध्यान करनेसे होती है-गुरूकी भक्ति.