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२६६ . श्रीभवचनसार भाषाटीकाः। श्री. सिद्धपरमेष्टी भी हैं-ये दोनों ही परमात्मा सर्विकल्स अवस्था व शुद्धोपयोगकी भावनाके समय ध्यान करने योग्य हैंइनहीके द्वारा यहा भात्मा अपने निम स्वभावमें निश्वरता प्राप्त करता है । जगतके प्राणियों को किसी देवकी आवश्यक्ता पड़ती ' है जिसकी वे भक्ति करें उनके लिये आचार्यने बता दिया है कि जैसे हमने यहां श्री भरत मौर सिद्ध, परमात्माको नमस्कार किया है वैसे सर्व उपासक श्रावक श्राविका मी इनहीकी भक्ति करो-इनड़ीके द्वारा मोक्षका मार्ग प्रगट होगा.' आत्माको परम सुखकी प्राप्ति होगी। ___ इस प्रकार नमस्कारको मुख्यतासे दो गाथाएं पूर्ण हुई। इस तरह भाठ गाथाओंसे पांचवा स्थलः मानना चाहिये। इस तरह मठारइ, गाथाओंसे व पांच स्थलसे सुख प्रपंच नामका मन्तर अधिकार पूर्ण हुवा । इस तरह पूर्व में कहे प्रमाण "एस सुरासुर इत्यादि चौदह गाथाओंसे . पीटिकाको वर्णन किया। फिर सात गाथाओंसे सामान्यपने सर्वज्ञकी सिद्धि की,फिर तेतीस गायामोंसे ज्ञान प्रपंच फिर अठारह गाथाओंसें सुख प्रपंच इस तरह समुदा-. यसे,वहत्तर गाथाओं के द्वारा तथा चार,मन्तर अधिकारोंसे शुद्धो पयोग नामका अधिकार पूर्ण किया ॥ ७२ ॥
उत्थानिका-इसके आगे पचीस गाथा पर्यंत ज्ञानकंठिका चतुष्टय नामका अधिकार प्रारम्भ किया जाता है। इन २९. गाथाओंके मध्यमें पहले शुभ व अशुभ- उपयोगमूढ़ताको हवा. नेके लिये " देवदनदि गुरुःइत्यादि दश गाथाओं तक पहली ज्ञानकंठिकाका कथन है। फिर परमात्माके स्वरूपके ज्ञानमें मुह.