________________
२६९] श्रीमवचनसार भापाटीका ।
भावार्थ-यहां आचार्यने शुद्ध मास्माके भो केवलज्ञान और अतींद्रिय अनन्तसुख स्वभावको धरनेवाले हैं दो भेद किये हैं अर्थात् मरहंत और सिद्ध) और उनके स्वरूपका खुलासा करते हुए उनको नमस्कार किया है । क्योंकि वस्तु के स्वरूप मात्रको कहना भी नमस्कार हो जाता है। परमौदारिक शरीर सहित आत्माको अरहंत कहते हैं जिनका शरीर कोटि सूर्यसम दीयमान रहता हुआ अपनी दीप्तिसे चारों तरफ मामंडक बना लेता है, निस शरीरको भोजनपानकी आवश्यका नहीं होती है, चारों तरफसे शरीरको पुष्टिकारक नोकर्म वर्गणाओं का नित्य ग्रहण होता है। इस मरहंत भगवानके ज्ञानावरणीय मादिचार धातिया कर्माका भभाव हो गया है। इसलिये केवळदर्शन, फेवलज्ञान, अनन्तबज्ञ तथा अतींद्रिय मानन्द, परम वीतरागता भादि स्वभाव प्रगट हो गए हैं। तथा पुण्यकर्मका इतना तीव्र उदव हैं जिससे समवशरणकी रचना हो जाती है जिसमें १२ समाओं के द्वारा देव, मनुष्य, तियच सब भगवानकी भनक्षरी दिव्यध्वनि सुनकर अपनीर मामामें धर्मका स्वरूप समझ जाते हैं। बड़ेर गणधर मुनि चक्रवर्ती राजा, तथा इंद्रादिक देव मिस अरहंत भगवानक्री भली विधिसे आराधना करते हैं इस भावसे कि वे भी भरहंत पदके योग्य हो नावें ऐसा ईश्वरपना जिन्होंने प्राप्त कर लिया है तथा तीन लोकके ईस इन्द्र महमिंद्र भी जिनको अंतरंगसे प्यार करते हैं ऐसे परम देवपनेको धारण करनेवाले हैं, इत्यादि अद्भुत महात्म्यके धारी श्री अरहंत भगवान कहे जाते हैं। इन अरहंतोंका शरीर परम सौम्य वीतरागमय झलकता है