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श्रमिवचनसार भाषाटीका ।
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हुए गाथाएं आठ हैं। इनमें भी पहले इंद्रिय सुखको दुःख रूप स्थापित करने के लिये 'मणुभासुरा' इत्यादि गाथाएं दो हैं । फिर मुक्त आत्माके देह न होनेपर भी सुख है इसबात को बताने के लिये देह सुखका कारण नहीं है इसे जनाते हुए पया इट्टे विसये" इत्यादि सूत्र दो हैं । फिर इन्द्रियोंके विषय भी सुखके कारण नहीं है ऐसा कहते हुए 'तिमिरहरा' इत्यादि गाथाएं दो हैं फिर सर्वज्ञको नमस्कार करते हुए 'तेजो दिट्ठि' इत्यादि सूत्र दो हैं ? इस तरह पांच अंतर अधिकार में समुदाय पातनिका है ॥२॥ उत्थानका - भागे अतीन्द्रिय सुख जो उपादेव रूप है उसका स्वरूप कहते हुए अतीन्द्रिय ज्ञान तथा अतीन्द्रिय सुख उपादेय हैं और इन्द्रियनित ज्ञान और कहते हुए पहले अधिकार स्थलकी गाथासे चार स्थलका सूत्र कहते हैं ।
सुख हेय हैं इस तरह
अस्थि अमुतं सुतं अदिदियं इंदियं च अत्थेषु गाणं च तथा सोक्खं, जं तैलु परं च तं शेयं ॥१३॥
अत्यमूर्त मूर्तमतीन्द्रियमेन्द्रियं चार्थेषु ।
'शांन च तथा सौख्यं यत्तेषु परं च तत् ज्ञेयम् ॥५३॥
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सामान्यार्थ - पदार्थो के सम्बन्ध में जो अमूर्तिक ज्ञान हैं वह अतीन्द्रिय है तथा जो सूर्वी ज्ञान है वह इंद्रिय जनित है ऐसा ही सुख है । इनमें से जो अतींद्रियज्ञान और सुख है वही जानने योग्य है । :
अन्वंय सहित विशेषार्थ - ( अत्थेसु) ज्ञेय पदार्थों के सम्बन्ध में (गाणं ) ज्ञान ( अमुत्तं ) जो अमूर्तीक है सो (अर्दि