________________
wmanna
श्रीमवचनसार भाषार्टीका। [१६३ नहीं है। प्रथम ही यह कहते हैं, कि जिसके ज्ञेय अर्थात् मानने योग्य पदार्थमें कर्मवंधका कारण रूप इष्ट तथा अनिष्ट विकल्प रूपसे परिणमन है अर्थात् जो पदार्थीको इष्ट तथा अनिष्ट रूपसे नानता है उनके क्षायिक अर्थात् केवलज्ञान नहीं होता है । परिणमदि यमढ, णादा जदि व खाइगं तस्म। गाणंति तं जिणंदा, खवयंत कम्ममेवुत्ता ॥ ४२ ॥
परिणमति शेयमर्थ ज्ञाता यदि नैव शायिक तस्य । ज्ञानमिति तं जिनेन्द्राः क्षपर्यंत कम्वोक्तवन्तः ॥ ४२ ॥
सामान्यार्थ-यदि जाननेवाला ज्ञेय पदार्थरूप परिणमन करता है तो उसके क्षायिकज्ञान नहीं होसक्ता है इसलिये जिनेन्द्रोंने उस जीवको कर्मक्षा अनुभव करनेवाला ही कहा है। . अन्वय सहित विशेषार्थ:-(नदि ) यदि ( णादा) ज्ञाता आत्मा ( णेयं अटुं) जानने योग्य पदार्थरूप (परिणमति) परिणमन करता है अर्थात् यह नील है, यह पीत है इत्यादि विकल्प उठाता है तो (तस्स) उस ज्ञानी आत्माके ( खाइगं णाणति णेब ) क्षायिकज्ञान नहीं ही है अथवा स्वाभाविक ज्ञान ही नहीं है । क्यों नहीं है इसका कारण कहते हैं कि (निर्णिदा) जिनेन्द्रोंने (ते) उस सविकल्प जाननेवालेको (कम्मं खवयंत एव) कर्मका अनुभव करनेवाला ही (उत्ता) कहा है। अर्थ यह है कि वह आत्मा विकार रहित स्वागाविक मानंदमई एक सुख स्वभावके अनुभवसे शून्य होता हुआ उदयमें पाए हुए अपने फर्मको ही अनुभव कर रहा है । ज्ञानको अनुभव नहीं कर रहा है । अथवा दुसरा व्याख्यान यह है कि यदि ज्ञाता प्रत्येक पदार्थरूप परिणमन