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श्रीreater भापाटीका ।
बड़ा होता है । प्रयोजन यह है कि मात्मा ज्ञानगुणके प्रमाण है ज्ञानगुण आत्मा प्रमाण है। आत्माका और ज्ञानगुणका तादात्म्य सम्बन्ध है । जो कोई आत्माको सर्व व्यापक या बहुत छोटा मानते हैं उसका निराकरण पहले ही किया जा चुका है । यहां उसीका पुष्टिकरण है कि जब हम अपने शरीर में सर्व स्थानों पर ज्ञानका काम कर सक्ते हैं तब हमारा आत्मा शरीर प्रमाण सिद्ध हो गया | जैसे प्रदेशोंकी अपेक्षा ज्ञानगुण और आत्माकी समानता है वैसे विषयकी अपेक्षा भी समानता कह सक्ते हैं, जैसे ज्ञान गुण लोकालोकको जानता हुआ लोकालोक प्रमाण सर्वव्यापक कहलाता है वैसे ही आत्माको भी लोकालोक ज्ञायक या सर्वज्ञ कह सक्ते हैं। यहां यही दिखलाया है कि द्रव्य और गुणकी श्रमाणकी अपेक्षा समानता है। यहां यह भी खुलासा समझ लेना कि जो लोग आत्माको प्रदेशोंकी अपेक्षा सर्वव्यापक मानते हैं उनका निराकरण करके यह कहा गया कि सर्वके जाननेको अपेक्षा सो सर्वव्यापक कह सक्ते हैं, परन्तु प्रदेशों की अपेक्षा नहीं कह
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सक्के | यहां वह तात्पर्य है कि जिस केवलज्ञानके बराबर आत्मा है वह केवलज्ञान ही सर्वको जानता हुआ आकुलतारहित होता है जिसकी प्राप्ति शुद्धोपयोगकी भावनाये होती है अतएव सर्व तरइसे रुचिवान होकर इस शुद्धोपयोगमई साम्यभावकी भावना कर्तव्य है ।
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उनका भागे कहते हैं कि जैसे ज्ञानको पहले सर्वव्यापक कहा गया है तैसे ही सर्वव्यापक ज्ञानकी अपेक्षासे भगवान् अरहंत आत्मा भी सर्वगत हैं।