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१४] श्रीप्रवचनसार भाषाटीका । आमा ज्ञान प्रमाण है अर्थात ज्ञानके साथ आत्मा हीन या अधिक नहीं है इसलिये ज्ञान जितना है उतना मात्मा है। कहा है "समगुणपर्यायं द्रव्यं भवति " अर्थात् द्रव्य अपने गुण और पर्यायों मन होता है । इस वचनसे वर्तमान मनुष्यभवमें यह मात्मा वर्तमान मनुष्य पर्यायके समान प्रमाणवाला है तैसे ही मनुष्य पर्यायके प्रदेशोंमे रहनेवाला ज्ञान गुण है । जैसे यह आत्मा इस मनुष्य पर्याय ज्ञान गुणके बरावर प्रत्यक्षमें दिखलाई पड़ता है
से निश्चयसे सदाही भव्याबाघ और अविनाशी सुख मादि अनन्त शुणोंका आधारभूत जो यह केवलज्ञान गुण तिस प्रमाण यह मात्मा है। (गाणं णेयप्पमाण) ज्ञान ज्ञेय प्रमाण (उद्दिट्टो कहा गया है। जैसे इंधनमें स्थित आग ईंधन के बराबर है ऐसे ही ज्ञान ज्ञेयके बराबर है। ( मेयं लोयालोय ) ज्ञेय लोक और मलोक हैं। शुद्धबुद्ध एक स्वभावमई सर्व तरहसे स्पादेवभूत गृहण करने योग्य परमात्म द्रव्यको मादि लेकर छः द्रव्यमई यह लोक है। लोकके बाहरी भागमें जो शुद्ध माकाश है सो अलोक है। ये दोनों लोकालोक अपने अपने अनन्त पर्वावोंमें परिणमन करते हुए अनित्य हैं तो भी द्रव्यार्थिक नयसे नित्य हैं। ज्ञान लोड अलोनको जानता है। (सम्हा) इस कारणसे (गाणं तु सब्बगय) ज्ञान भी सर्वगत है। अर्थात् क्योंकि निश्चय स्नत्रयमई शुद्धोपयोगकी भावनाके क्लसे पैदा होनेवाला जो केवलज्ञान है वह पत्थरमें टांझीसे उकेरे हुएके न्यायसे पूर्वमें कहे गये सर्व ज्ञेयको जानता है इसलिये व्यवहार निबसे ज्ञान सर्वगत कहा गया है। इसलिये यह सिद्ध हुआ कि मात्मा ज्ञान प्रमाण है और ज्ञान सर्वगत है।