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श्रीमाणिक्यन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुख
अर्थ – सदृश पदार्थ में 'यह वही है' ऐसा ज्ञान तथा उसी पदार्थ में 'यह उसके समान है' ऐसा ज्ञान प्रत्यभिज्ञानाभास कहलाता है । जैसे एक साथ पैदा हुये दो मनुष्यों में उल्टा ज्ञान हो जाता है ||६||
संस्कृतार्थ – सदृशे वस्तुनि तदेवेति तथा तस्मिन्नेव वस्तुनि तत्सदृशमिति ज्ञानम् अथवा सादृश्ये एकत्वस्य एकत्वे वा सादृश्यस्य ज्ञानं प्रत्यभिज्ञानाभासः कथ्यते । एवमेव वैलक्षण्यादिष्वपि प्रत्येतव्यम् ॥६॥ तर्काभासलक्षणम्, तर्काभास का लक्षण -
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असम्बद्धे तज्ज्ञानं तर्काभासम् ॥ १० ॥
- अर्थ - अविनाभावरहित में अविनाभाव के ज्ञान या जिन पदार्थों में परस्पर व्याप्ति नहीं है उनमें होने वाले व्याप्तिज्ञान को तर्काभास कहते हैं । जैसे किसी के किसी एक पुत्र को श्याम (काला) देखकर 'इसके जितने पुत्र हैं तथा होवेंगे, वे सभी श्याम हैं या होंगे, ऐसी व्याप्ति बनाना तर्काभास है ॥१०॥
संस्कृतार्थ - श्रविनाभावरहिते ऽ विनाभावज्ञानं, मिथोव्याप्तिविहीने व्यप्तिज्ञानम्वा तर्काभासो निगद्यते । यथा कस्यचिदेकस्पुत्रं कृष्णमालोक्य यावन्तो ऽस्य पुत्राः सन्ति भविष्यन्ति वा ते सर्वे कृष्णाः सन्ति भविष्यन्ति वेति ज्ञानं तर्काभासः ॥१॥
अनुमानाभासस्वरूपम् अनुमानाभास का स्वरूप
इदमनु मानाभासम् ॥११॥
संस्कृतार्थ – पक्षाभासः, हेत्वाभासो, दृष्टान्ताभासश्चेत्यादय: श्रनुमानाभासा विज्ञेयाः ॥ ११ ॥
विशेषार्थ - अवयवाभासों के दिखाने से अनुमानस्वरूपाभास स्वयं सिख हो जाता है, क्योंकि अनुमान अवयवों से भिन्न कोई वस्तु नहीं है । इसलिये मागे श्रवयवाभास बताये हैं ॥ ११॥ .