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श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखेएक ही वस्तु अनुवृत्तप्रत्यय तथा व्यावृत्तप्रत्यय का विषय होता है, इसलिये वस्तु अनेकान्तात्मक है। इस हेतु से वस्तु को तिर्यक्सामान्य और व्यतिरेकविशेषरूप सिद्ध किया है, तथा एक ही वस्तु में पूर्व आकार का त्याग और उत्तर प्राकार की प्राप्ति इन दोनों सहित स्थितिरूप लक्षण वाले परिणाम से ही अर्थक्रिया बन सकने के कारण भी वस्तु अनेकान्तात्मक है । इस हेतु से वस्तु को ऊर्ध्वतासामान्य और पर्यायविशेषरूप सिद्ध किया है।
अर्थक्रिया द्रव्य ( सामान्य ) और पर्याय ( विशेष ) दोनों रूप पदार्थों में ही बन सकती है। केवल द्रव्य अथवा पर्याय में नहीं, इससे सिद्ध होता है कि सामान्य और विशेष रूप पदार्थ ही प्रमाण का विषय होता है। .
इसी प्रकार अनुवृत्तप्रत्यय का विषय सामान्य और व्यावृत्त प्रत्यय का विषय विशेष होता है। इसलिये भी सामान्य और विशेष उभयरूप पदार्थ ही प्रमाण का विषय सिद्ध होता है ।। २ ।।
संस्कृतार्थ-अनुवृत्ताकारो हि गौः गौः गौरित्यादिप्रत्ययः । व्यावृत्ताकार:--श्यामः, शबलः इत्यादिप्रत्ययः। पदार्थानां कार्यमर्थ क्रिया । वस्तुतः पूर्वाकारविनाशः उत्तराकारावाप्तिश्चेत्युभयावस्थासहितस्थितिः परिणामः ।
अनुवृत्तञ्च व्यावृत्तञ्च तौ च तो प्रत्ययौ, तयोः गोचरः, तस्य भावस्तत्त्वं तस्मात् । पूर्वोत्तराकारयोः यथासंख्येन परिहारावाप्तिः, तम्यां स्थितिः, सैव लक्षणं यस्य सः, स चासौ परिणामश्च, तेनार्याक्रियायाः उपपत्तिः, तस्याः । तथा च सादृश्यव्यावृत्तात्मकज्ञानविषयत्वात् पूर्वोत्तराकारपरित्यागप्राप्तिसहचरितध्रौव्यलक्षणपरिणत्या अर्थ क्रियासिद्धेश्च दस्तु सामान्य विशेषात्मकम अनेकधर्मात्मकम्वा सिद्धयति ।। २ ॥