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श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे
वचन या शब्द से वास्तविक अर्थबोध होने का कारणকাজীলঙ্কারি হাতায় অগনিतिहेतवः ॥९६॥
अर्थ-अर्थों में वाच्यरूप तथा शब्दों में वाचकरूप एक स्वाभाविक योग्यता होती है, जिसमें संकेत हो जाने से ही शब्दादिक पदार्थों के ज्ञान में हेतु हो जाते हैं ॥६६॥ ___संस्कृतार्थ- सहजा-स्वभावसम्भूता, योग्यता-शब्दार्थयो र्वाच्यवाचकशक्तिः, तस्यां संकेतस्तस्य वशस्तस्मात् । तथा च शब्दार्थ निष्ठवाच्यवाचकशक्तिसंकेत्तग्रहणनिमित्तेन शब्दादयः स्पष्टरीत्या पदार्थज्ञानं जनयन्तीति भावः ॥६६॥
विशेषार्थ—'घट शब्द' में कम्बुग्रीवादि वाले घड़े को कहने की शक्ति है । और उस घड़े में कहे जाने की शक्ति है। जिस व्यक्ति के ऐसा संकेत हो जाता है कि यह शब्द पड़े को कहता है उस व्यक्ति को घट शब्द के सुनने मात्र से ही घड़े का ज्ञान हो जाता है और वह घड़े को शीघ्र ले भी आता है ॥६६॥
शब्द से अर्थावबोध होने का दृष्टान्तयथा मेर्वादयः सन्ति ॥९७॥
अर्थ-जैसे सुमेरु प्रादिक हैं । अर्थात् जैसे मेरुशब्द के कहने मात्र से ही जम्बूद्वीप के मध्य स्थित सुमेरु का ज्ञान हो जाता है, उसी प्रकार सर्वत्र शब्द से अर्थ का बोध हो जाता है ।।६७।।
संस्कृतार्थ-यथा मेर्वादयः सन्तीत्यादिवाक्यचवणात सहजयोग्यताश्रयेण हेमाद्रिप्रभृतीनां बोधो जायते तथैव सर्वत्र शब्दादविबोधो जायते ॥७॥
इति तृतीयः परिच्छेदः समाप्तः ।।