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श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे
को स्पष्ट करने के लिये साध्य के लक्षण में इष्ट विशेषण दिया गया है।
जिस पदार्थ को हम सिद्ध करना चाहते हैं वह कदाचित् दूसरे प्रमाण से बाधित हो तो प्रमाणान्तर उसे सिद्ध नहीं कर सकता। इसलिये जो किसी दूसरे प्रमाण से बाधित होगा वह भी साध्य नहीं हो सकता । इस बात को स्पष्ट करने के लिये साध्य के लक्षण में अबाधित वाचन दिया गया है । वह बाधित प्रत्यक्ष से, अनुमान से, आगम से, लोक से तथा स्ववचन से इत्यादि अनेक प्रकार का होता है ॥१८॥ साध्य का इष्टविशेषण वादी की अपेक्षा होने का स्पष्टीकरण--
न चासिद्धवादिष्टं प्रतिवादिनः ॥१९॥
अर्थ-जिस प्रकार प्रसिद्ध विशेषण प्रतिवादी की अपेक्षा से है। उस प्रकार इष्टविशेषण प्रतिवादी की अपेक्षा नहीं है, किन्तु वादी की अपेक्षा से है ॥१६॥
संस्कृतार्थ--न हि सर्व सर्वापेक्षया विशेषणमपि तु किञ्चित्किमप्युद्दिश्य भवतीति । असिद्धवदिति व्यतिरेकमुखेनोदाहरणम् । यथा प्रसिद्धविशेषणं प्रतिवाबपेक्षया प्रोक्त न तथा इष्टविशेषणमिति भावः ॥१६॥
विशेषार्थ—पहले पक्षस्थापन करने वाले को वादी कहते हैं और जो पीछे निराकरणार्थ उत्तर देता है उसे प्रतिवादी कहते हैं ।
इष्टविशेषण वादी की अपेक्षा होने का कारणप्रत्यायनाय होच्छा वक्त रेव ॥२०॥
अंर्थ-दूसरों को समझाने की इच्छा वादी के ही होती है प्रतिवादी के नहीं । इसलिये जब साध्य को सिद्ध करना