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श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे –
व्याप्तिज्ञाननिर्णयकारणम्, व्याप्तिज्ञान के निर्णय का कारण
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अर्थ-व्याप्ति ( श्रविनाभावसम्बन्ध ) का निर्णय तर्कप्रमाण से होता है ।। १५ ।।
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संस्कृतार्थ - -- स हि अविनाभावस्तर्क प्रमाणादेव निश्चीयते । विशेषार्थ - जहाँ जहाँ साधन होता है वहाँ वहाँ साध्य का रहना और जहाँ जहाँ साध्य नहीं होता वहाँ वहाँ साधन का नहीं रहना । इस प्रकार के अविनाभाव का निश्चय तर्क प्रमाण से ही होता है, अन्य प्रमाण से नहीं ।
जैनेतर किसी भी मत ने तर्कप्रमाण नहीं माना है । इस लिये सभी की मानी प्रमाणसंख्या झूठी ठहरती है । क्योंकि प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति तथा प्रभाव किसी भी प्रमाण से व्याप्ति का निर्णय नहीं हो सकता। इसलिये तर्कप्रमाण सभी को मानना पड़ेगा, तब उनके द्वारा मानी हुई प्रमाणसंख्या कैसे ठीक रहेगी ? प्रत्यक्षादि प्रमाणों से व्याप्ति का निर्णय नहीं होता, यह न्याय के अन्य ग्रन्थों से जानना चाहिये ॥ १५ ॥
साध्य स्वरूपम्, साध्य का स्वरूप
इष्टमबाधितम सिद्धं साध्यम् ॥ १६ ॥
अर्थ - जो वादी को इष्ट ( अभिप्रेत ), प्रत्याक्षादि प्रमाणों से अबाधित और प्रसिद्ध होता है उसे साध्य कहते हैं ।
संस्कृतार्थ -- यद् वादिनः साधयितुमिष्टं, प्रत्यक्षादिप्रमाणैरबा
धितं, संशयाद्याक्रान्तं च विद्यते तत्साध्यं प्रोच्यते ॥ १६ ॥
विशेषार्थ पण है ॥ १६ ॥
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इष्ट, अबाधित और असिद्ध ये तीन साध्य के विशे
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