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न्यायशास्त्रे सुबोधटीकायां द्वितीयः परिच्छेदः ।
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इसलिये इसको प्रत्यक्ष कहा है, वस्तुतः यह परोक्ष ही है । क्योंकि 'प्राद्ये परोक्षम्' सूत्र कहता है, कि मतिज्ञान परोक्ष प्रमाण है ।
पदार्थ और प्रकाश को ज्ञान के कारणत्व का निषेध -
नार्यालोको कारणं परिच्छेद्यत्वात्समोवत् ॥६॥
। क्योंकि वे ज्ञान
अर्थ - पदार्थ और प्रकाश ज्ञान के कारण नहीं है के विषय हैं । जो-जो ज्ञान का विषय होता है वह वह ज्ञान का कारण नहीं होता, जैसे अन्धकार | अन्धकार ज्ञान का विषय तो होता है, क्योंकि सभी कहते हैं कि यहाँ प्रन्धकार है, परन्तु ज्ञान का कारण नहीं है, उल्टा ज्ञान का प्रतिबन्धक है ।
संस्कृतार्थ - श्रर्थश्च श्रालोकश्चेति श्रर्थालोको पदार्थप्रकाशाविर्त्यः । कारणं न ज्ञानजनकी न स्तः । परिच्छेत्तुं योग्यौ परिच्छेद्यौ तयोर्भावस्तत्त्वं तस्मात् परिच्छेद्यत्वात् ज्ञेयत्वादित्यर्थः । श्रर्थालोका विति धामनिर्देशः । कारणं न भवतीति साध्यम् । परिच्छेत्वादिति हेतुः । तमोवदिति दृष्टान्तः । तथा च व्याप्तिः - यच्च परिच्छेदयं तन्न ज्ञानं प्रति कारणं, यथान्धकारम् । परिच्छेद्यो चार्थालोको तस्मात् ज्ञानं प्रति कारणं न भवतः ॥६॥
विशेषार्थ – यदि पदार्थ को ज्ञान का कारण मानें तो मौजूद पदार्थों का ही ज्ञान होगा । जो उत्पन्न नहीं हुए हैं, अथवा नष्ट हो गये हैं, उनका ज्ञान नहीं होगा, क्योंकि जो है ही नहीं; वह कारण कैसे हो सकता है ?
और जो मालोक (प्रकाश) को कारण मानते हैं उन्हें रात्रि में कुछ भी ज्ञान नहीं होगा । यह भी नहीं कह सकेंगे कि यहाँ प्रत्यकार है ॥६॥