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न्यायशास्त्रे सुबोधटीकायां षष्ठः परिच्छेदः ।
१११ पौरुषेयम्, यथा घटः, इत्यत्र घटः व्यतिरेकदृष्टान्ताभासः, विद्युदादेः मूर्त त्वेऽपि पौरुषेयत्वाभावात् ॥४५॥
विशेषार्थ - व्यतिरेक में सर्वत्र साध्याभाव में साधनाभाव दिखाया जाता है । इससे उल्टा दिखाने में बिजली आदि के साथ पूर्व की तरह प्रतिप्रसङ्ग होता है, इसलिये वह व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है ||४५||
बालप्रयोगाभास का लक्षण - बालप्रयोगाभासः पञ्चावयदेषु कियद्धीनता ॥४६॥
श्रर्थ -- प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन इन पांच अनुमानावयवों में से कितने ही कम अवयवों का प्रयोग करना बालप्रयोगाभास है । क्योंकि कम अवयवों वाले प्रयोग से बालकों को ज्ञान नहीं हो सकता, इसलिये वह प्रयोग बालकों के लिये झूठा है ।
संस्कृतार्थ - - पञ्चभ्यो हीनं रनुमानावयवैः बालकानां यथार्थज्ञानं नो जायते श्रतएव तान्प्रति पञ्चैवावयवाः प्रयोक्तव्या भवेयुः । श्रतो हीनावयवप्रयोगों बालप्रयोगाभासो भवेत् ||४६॥
बालप्रयोगाभास का उदाहरण-अग्निमानयं प्रदेशो धूमवत्वाच्चदित्थं तदित्थं यथा महानसः । अर्थ - यह प्रदेश अग्निवाला है, क्योंकि धूम बाला है । जो घूम वाला होता है वह अग्नि वाला होता है, जैसे रसोई घर । इस प्रयोग में प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण ये तीन ही अवयव कहे गये हैं, इसलिये बालप्रयोगाभास है ॥४७॥
द्वितीय बालप्रयोगाभास -- धूमवांश्चायम् ॥४६॥
अर्थ -- पूर्वोक्त तीन अवयवों के साथ इतना और कहना कि यह भी धूमवाला है । यहां यद्यपि उपनय सहित चार अवयब कहे गये हैं, तो भी पूरे पांच प्रवयव न होने से यह बालप्रयोगाभास है ।