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न्यायशास्त्र सुबोधटीकायां षष्ठः परिच्छेदः।
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उपर्युक्त सूत्र नं० ४२ के वर्णन की पुष्टिविधुदादिना तिप्रसङ्गत ॥ ४३ ॥
अर्थ-उल्टा अन्वय दिखलाने से बिजली आदिक के अतिप्रसङ्ग . होता है । अर्थात् बिजली अपौरुषेयं है, इसलिये अमूर्त होना चाहिये,
परन्तु वह अपौरुषेय होते हुए भी मूर्तिक है ।।४३।। .....संस्कृतार्थ-विपरीतान्वयव्याप्तिप्रदर्शनेन विद्युदादिनातिप्रसङ्गो . भवेत् । अर्थात् विद्युत् अपौरुषेया विद्यते ऽ तो ऽ मूर्ता भवियव्या । परन्तु सा अपौरुषेया सत्यपि मूर्तिका वर्तते, प्रतो ऽत्र विपरीतान्वयव्याप्तिप्रदर्शनम् अन्वयदृष्टान्ताभासो विज्ञेयः ।।४३॥
व्यतिरेकदृष्टान्ताभास के भेद और उदाहरण
হলি খিনিই.', গৃহাভিলিয়सुखाकाशवत् ॥४४॥
अर्थ--व्यतिरेकदृष्टान्ताभास के तीन भेद हैं। साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल । जैसे शब्द अपौरुषेय होता है, क्योंकि वह अमूर्त होता है । जो पौरुषेय नहीं होता, वह अमूर्तिक भी नहीं होता, जैसे परमाणु, इन्द्रियसुख और आकाश ये तीनों व्यतिरेक दृष्टान्ताभास हैं। क्योंकि इन में क्रमश: साध्य, साधन और उभय तीनों का व्यतिरेक प्रसिद्ध है।
यहां परमाणु प्रसिद्धसाध्यव्यतिरेक है, क्योंकि वह अपौरुषेय है, इसलिये परमाणु के अपौरुषेयपना का साध्य से व्यतिरेक नहीं हुआ।
- इन्द्रियसुख प्रसिद्धसाधन व्यतिरेक है, क्योंकि वह अमूर्तिक है, इसलिये इन्द्रियसुख का अमूर्तिकपना साधन से व्यतिरेक नहीं हुआ।