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________________ ७ मित्र-भेद में रहने वाला ऊंट नाम का जानवर है और यह आपका भोजन है, इसलिए इसे मारिए।" सिंह ने कहा, “घर आने वाले को मैं नहीं मारूंगा; कहा है कि "विश्वास करके तथा बिना किसी भय के घर आये हुए शत्रु को भी जो मारता है, उसे ब्राह्मण के मारने जैसा ही पाप लगता है। इसलिए तुम उसे अभयदान देकर मेरे पास लाओ, जिससे मैं उसके आने का कारण पूर्छ ।" इस पर वे सब ऊंट को भरोसा और अभयदान देकर मदोत्कट के पास लाए और वह प्रणाम करके बैठ गया। बाद में सिंह के पूछने पर कारवां से अपने अलग होने से लेकर उसने अपना सब हाल कहा । इस पर सिंह ने कहा , “अरे ऊँट ! अब तू गाँव में जाकर बोझ ढोने की तकलीफ न उठा। इस जंगल की पन्ने की तरह हरी घास के ढूंगों को चरते हुए तू हमेशा मेरे पास रह।" ऊँट भी 'ठीक' यह कहकर तथा 'अब कहीं से भय नहीं है' यह जानकर उनके बीच में घूमता हुआ खुशी-खुशी रहने लगा। ____ एक दिन एक जंगली हाथी के साथ मदोत्कट की लड़ाई हुई और उसे हाथी के दांतों से चोट पहुँची। घायल होते हुए भी वह मरा नहीं, पर शरीर की कमजोरी के कारण वह एक कदम भी नहीं चल सकता था। कौआ वगैरह उसके सब नौकर भी भूख से पीड़ित होकर अपने मालिक की कमजोरी से बड़ी तकलीफ पाने लगे। इस पर सिंह ने उनसे कहा, “अरे, कहीं से कोई ऐसा जीव खोज लाओ जिसे मैं ऐसी हालत में होते हुए भी मार कर तुम्हारे खाने का प्रबंध करूं।" __इस पर वे चारों ओर घूमने लगे, पर कोई ऐसा जानवर नहीं दीख पड़ा। इस पर कौआ और सियार आपस में सलाह करने लगे। सियार बोला, "अरे कौए ! इस भाग-दौड़ से क्या मतलब ? यह ऊँट मालिक का विश्वासी होकर रह रहा है, उसे मारकर अपनी गुजर बसर करनी चाहिए।" कौआ बोला, “तूने ठीक कहा, पर मालिक ने उसे अभयदान दिया है, इसलिए वह मारने लायक नहीं है।" सियार बोला , "अरे कौए ! मैं मालिक को ऐसा पाठ पढ़ाऊंगा जिससे वह उसे मार डालेगा। तू. तब तक यहीं ठहर, जब तक
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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