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मित्र-भेद
७७ मैंने जो इस पिंगलक के साथ मित्रता की वह मैंने ठीक नहीं किया। कहा है कि
“समान धन और समान कुल वालों के बीच मित्रता और विबाह ठीक लगता है ; मजबूतों और कमजोरों के बीच ये बातें ठीक नहीं । और भी “पशुओं की पशुओं के साथ , बैलों की बैलों के साथ , घोड़ों की घोड़ों के साथ , मूों की मूों के साथ और बुद्धिमानों की बुद्धिमानों के साथ मित्रता होती है; समान शील और रुचि वाले
मनुष्यों के ही बीच मित्रता संभव है । मैं जाकर पिंगलक को खुश करने की कोशिश तो करूंगा , पर वह प्रसन्न नहीं होगा। कहा भी है कि
"किसी कारण को लेकर जो क्रोधित होता है, वह कारण दूर होते ही अवश्य प्रसन्न हो जाता है, पर जो अकारण वैर ठानता है ऐसा मनुष्य कैसे प्रसन्न किया जा सकता है ? . अरे! यह ठीक ही कहा है कि "भक्त, उपकारी, दूसरे के हितों में अपने को लगाने वाला, सेवा के व्यवहार-तत्वों को जानने वाला और द्रोह से परे, ऐसे राजसेवक को अपने कार्य में सफलता मिले या न मिले, पर काम करते में अगर भूल हो जाय तो उसका नाश निश्चित है , क्योंकि समुद्र यात्रा की तरह राजा की सेवा भी हमेशा धोखों से भरी रहती है। और भी "सेवक प्रेम-भाव से भी अगर उपकार करे तो भी लोग उससे डाह करने लगते हैं । दूसरे बदमाशी से भी बुराई करें तो भी प्रीति-पात्र होते हैं । अनेक भावों का सहारा लेने वाले राजा का मन जानना मुश्किल है, परम गहन सेवा-धर्म योगियों के लिए अगम्य है।