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पञ्चतन्त्र
के संबंध की मर्यादा तोड़ने लगा । इस तरह उसे मर्यादा उल्लंघन करते हुए देखकर सब राजाओं ने एक होकर उसके साथ लड़ाई छेड़ दी । ऐसे समय राजा ने रानी के मुंह से अपनी पुत्री को कहलवाया, “पुत्री !
- ऐसी लड़की होते हुए भी सब राजे हमारे साथ लड़ाई करते हैं, यह क्या ठीक है ? इसलिए तुझे अपने पति से कहना चाहिए, जिससे वह मेरे शत्रुओं का नाश करे ।” इसके बाद राज कन्या ने उस बुनकर से रात्रि में विनयपूर्वक कहा, "भगवन्, आपके दामाद होते हुए भी मेरे पिता शत्रुओं द्वारा हराये जायं, यह ठीक नहीं है । इसलिए कृपा करके आप सब शत्रुओं का नाश करिए।" बुनकर ने कहा, “तेरे पिता के ये शत्रु किस गिनती में हैं -- तू भरोसा रख, क्षण-भर में सुदर्शन चक्र द्वारा सबको तिल - जैसे टुकड़े काटकर फेंक दूंगा ।"
कुछ समय बीत जाने पर शत्रुओं ने सारा देश घेर लिया और राजा के कब्जे में केवल शहरपनाह बच गई । फिर भी विष्णु का रूप धारण. करने वाला बुनकर है, यह न जानते हुए राजा रोज कपूर, अगर, कस्तूरी आदि विशिष्ट सुगंधित पदार्थों तथा अनेक प्रकार के वस्त्र, भोजन और पेय अपनी पुत्री द्वारा भेजकर उससे कहलाता था कि “भगवन्, सबेरे अवश्य ही किला टूट जायगा, क्योंकि घास और लकड़ी खत्म हो गई है तथा सब आदमी मार से घायल होकर लड़ाई लड़ने के काबिल नहीं रह गए हैं, और बहुत से तो मर भी चुके हैं। यह जानकर अब जो आपको उचित लगे वैसा करिए ।" यह सुनकर बुनकर भी सोचने लगा कि "किला अगर टूट गया तो इस राज कन्या से मेरा वियोग हो जायगा । इसलिए गरुड़ के ऊपर चढ़ कर आयुधों सहित अगर मैं अपने को आकाश में दिखलाऊँ तो शायद मुझे वासुदेव मानकर शंका में पड़े शत्रुगण राजा के योद्धाओं द्वारा मारे जायं । कहा है कि
"बिना जहर के साँप को बड़ा फन फैलाना चाहिए, विष हो अथवा न हो, पर फन भयंकर जरूर लगता है ।"