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मित्र-भेद
पवित्रता के साथ उसका लालन-पालन करते हैं । दूसरे को देने पर भी वे यश मलीन करती हैं। इसलिए लड़कियाँ पार न पाने
लायक आफत का कारण बनती हैं।" इस प्रकार बहुत चिंता करके अकेले में उसने रानी से कहा, “देवी ! कंचकीगण क्या कहते हैं, उसकी खोज करो । जिस मनुष्य ने ऐसा किया है, उस पर काल कुपित है।" यह सुनकर व्याकुल होकर रानी ने जल्दी से राजकुमारी के महल में जाकर खंडित अधरों वाली तथा नाखून के निशान लगे अंगों वाली अपनी लड़की को देखा और कहा, "अरे पापिनी, कुल-कलंकिनी ! किसलिए तूने अपनी चाल खराब की ? जिसकी काल बाट जोह रहा है, ऐसा कौन पुरुष तेरे पास आता है ? होना था, सो तो हो गया, पर तू मुझसे अब ठीक-ठीक बात बता।" यह सुनकर शर्म से झुके मुख से राज-कन्या ने विष्णु-रूपी बुनकर का हाल बताया। यह सुनकर हँसते चेहरे तथा पुलकित अंगों वाली रानी ने जल्दी से जाकर राजा से कहा , “देव ! तुम्हें बधाई है। नित्य आधी रात को भगवान् नारायण कन्या के पास आते हैं । उन्होंने गांधर्व-विधि से उसके साथ विवाह किया है । इसलिए मैं और तुम रात्रि में खिड़की पर खड़े होकर उनका दर्शन करेंगे , क्योंकि वे मनुष्यों के साथ बातचीत नहीं करते।" यह सुनकर प्रसन्न-वदन राजा ने वह दिन, जैसे सौ वर्ष का हो, बड़ी मुश्किल से बिताया।
रात में रानी के साथ राजा आकाश की ओर आँखें गड़ाकर गुप्त रूप से खिड़की में खड़े हुए गरुड़ पर चढ़े शंख, चक्र, गदा, पद्म हाथ में लिए तथा विष्णु के यथोक्त चिन्हों से युक्त उस बुनकर को आकाश से उतरते देखा। उस समय मानो अमृत के पूर में अपने को नहाता हुआ जानकर राजा अपनी रानी से कहने लगा, "प्रिये ! तुझसे और मुझसे बढ़कर कोई दूसरा धन्य नहीं है जिसकी संतति का भोग स्वयं नारायण करते हैं। इसलिए हमारे सब मनोरथ सिद्ध हो गए। अब जामाता के प्रभाव से सारी दुनिया हमारे वश में होगी।" इस प्रकार निश्चय करके वह सब सीमावर्ती राजाओं