SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चतंत्र जैसी अंड-बंड और असंभव बात मेरे बारे में इस मूढ़ ने कही है , वैसी ही दंतिल के बारे में भी कही होगी , यह निश्चित है। मैंने उस बेचारे का जो अपमान किया, वह ठीक नहीं था। उसके जैसे मनुष्यों से ऐसा आचरण संभव नहीं है । उसके बिना राज-कार्य, नगर-कार्य, सबमें शिथिलता आ गई है।" इस तरह बहुत विचार करने के बाद राजा ने दंतिल को बुलाकर और उसे अपने गहनों और वस्त्रों से सजाकर फिर उसे उसके पद पर नियुक्त कर दिया । इसीलिए मैं कहता हूँ कि "राजा के पास के उत्तम, मध्यम और अधम मनुष्य का जो शेखी के मारे सम्मान नहीं करता वह राजा का प्रिय पात्र होने पर भी दंतिल की तरह पद-च्युत हो जाता है।" संजीवक ने कहा, “भद्र ! यह तो ठीक है, जैसा आपने कहा है, मैं वैसा ही करूँगा।" उसके ऐसा कहने पर उसे लेकर दमनक पिंगलक के पास आया । और कहा, “देव, मैं उस संजीवक को लाया हूँ। अब आपको जैसा लगे करिए।" संजीवक पिंगलक को प्रणाम करके विनय के साथ आगे खड़ा रहा। पिंगलक ने भी उसके पुष्ट और बड़े जूए पर अपने वजू रूपी नख से अलंकृत दाहिने हाथ को रखकर उसका आदर करते हुए कहा ," आप कुशल से तो हैं ? इस निर्जन वन में आप किस तरह आए ?" उसने भी अपना सब हाल कहा। किस तरह वर्द्धमान के साथ वियोग हुआ तथा और भी बातें कहीं। यह सुनकर "पिंगलक ने और भी आदर के साथ उससे कहा, "मित्र! डरो मत । मेरी भुजाओं से तुम रक्षित होकर रहो । फिर भी तुम्हें हमेशा मेरे पास रहना चाहिए, क्योंकि अनेक विघ्नों से भरा हुआ और भयंकर पशुओं से सेवित यह वन बड़े प्राणियों के भी रहने लायक नहीं है, फिर घास खाने वालों की तो बात ही क्या है !" यह कहकर सब पशुओं से घिरे हुए पिंगलक ने यमुना के किनारे उतरकर पानी पिया और अपनी इच्छा से वन में घुस गया। उसी समय से वह करटक और दमनक के ऊपर राज्य-भार छोड़कर संजीवक के साथ सुन्दर बातचीत में समय बिताता हुआ रहने लगा। अथवा सच ही कहा है ---
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy