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पञ्चतंत्र
विचार नहीं होता । बदसूरत हो अथवा खूबसूरत, केवल पुरुष मान कर ही भोग वे करती हैं।
" छोर से नीचे लटकती तथा नितम्बों के ऊपर पड़ी हुई लाल साड़ी की तरह आसक्त पुरुष स्त्रियों के भोग योग्य बनता है ।
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'रक्त (लाल) आंलते की तरह रक्त (कामासक्त) पुरुष को स्त्रियां
आलता को अपने
बलपूर्वक गारकर अपने पैरों में लगाती हैं; पैरों में लगाती हैं और पुरुष को अपने पैरों में झुकाती हैं ।" इस प्रकार बहुत विलाप करने के बाद राजा ने उस दिन से दंतिल पर कृपा दिखाना बन्द कर दिया। बहुत क्या, उसकी ड्योढ़ी भी रोक दी । दंतिल ने राजा की नाखुशी देखकर सोचा -- “अहो, ठीक ही कहा है-
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'धन मिलने से कौन अभिमान नहीं करता ? क्या विषयी मनुष्यों की आपत्ति कभी समाप्त होती है ? पृथ्वी पर किसका मन स्त्रियों ने नहीं तोड़ा ? राजा का कौन प्रिय होता है ? काल की मर्यादा में कौन नहीं आता ? कौन याचक गौरव पाता है ? दुर्जन के जाल में फँसा हुआ कौनसा पुरुष बच गया है ? और भी .
"कौए में पवित्रता, जुआरी में सचाई, सर्प में काम की शांति, नपुंसक में धैर्य, शराबी में राजा का मित्र किसने देखा या सुना ?
क्षमा, स्त्रियों में
तत्व - चिंता और
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मैंने इस राजा का अथवा उसके किसी दूसरे संबंधी का स्वप्न में भी नुकसान नहीं किया है, फिर क्यों यह राजा विमुख है ?" इस प्रकार कभी तिल को राज-द्वार पर रुके हुए देखकर झाड़ देने वाले गोरंभ ने हँसकर द्वारपालों से यह कहा, "हे द्वारपालो ! राजा का कृपापात्र यह दंतिल स्वयं निग्रह और अनुग्रह करने वाला है, इसलिए इसके रोकने से तुम्हें भी वैसे ही गरदनिया मिलेगी जैसे मुझे ।" यह सुनकर दंतिल ने सोचा, अवश्य ही यह सब गोरंभ की हरकत है । अथवा ठीक ही कहा है-