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मित्र-भेद
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समीप जोर से हँसता है वह राजा का प्रिय पात्र होता है । "जो भयरहित होकर युद्ध और शरण को एक-सा मानता है , तथा विदेश यात्रा और नगर में रहने को भी एक-सा देखता है, वह राजा
का प्रिय पात्र होता है। "जो राजा की स्त्रियों का साथ , निन्दा और विवाद में मगन नहीं
रहता, वह राजा का प्रिय पात्र होता है।" करटक ने कहा, "तुम वहां जाकर पहले क्या कहोगे, यह तो पहले बतलाओ।" दमनक ने कहा --
"अच्छी वर्षा से जैसे बीज से दूसरे बीज उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार बातचीत करते हुए क्रमशः नये वाक्य उत्पन्न होते हैं। "उलटे उपाय करने से पैदा होने वाली विपत्ति और अनुकूल उपाय से उत्पन्न होने वाली गुण सिद्धि को जो नीति प्रयुक्त होती है, उसे मेधावी पुरुष सामने फड़कती दिखला देते हैं। "मधुर सूक्तियां सुग्गे की तरह किसी की वाणी में होती हैं तथा गंगे की तरह किसी के हृदय में भी होती हैं और कभी किसी की वाणी और हृदय दोनों में ही शोभायमान होती हैं। बिना समय के मैं कुछ नहीं बोलूंगा । बहुत पहले पिता की गोद में बैठकर मैंने यह नीति-शास्त्र सुना था।
"बृहस्पति भी अगर असमय में वचन बोलें तो उनकी बुद्धि का
भारी निरादर और अपमान होता है।" करटक ने कहा-- "पर्वतों की तरह राजा सदा व्यालाकीर्ण (खल-पुरुष अथवा
सों से आकीर्ण),विषम (कठोर प्रकृति वाला अथवा ऊँचा-नीचा)
कठिन और कष्ट से सेवन योग्य होता है। उसी तरह "राजे सों की तरह भोगी (वैभवयुक्त अथवा फणयुक्त) कंचुकाविष्ट (कंचुकी अर्थात् अन्तःपुर के एक अधिकारी से युक्त