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पञ्चतंत्र
द्वेष होता है, पर वह अपने प्रति भी सेव्य और असेव्य भेद जानने पर द्वेष क्यों नहीं करता ?
" जिसके आश्रय करने पर विश्राम नहीं मिलता और जिसके सेवक भूखे होकर इधर-उधर फिरते रहते हैं, ऐसे राजा का नित्य फूलनेफलने वाले मदार के पेड़ की तरह भी त्याग कर देना चाहिए । " राजमाता, देवी, राजकुमार, मुख्य मंत्री, पुरोहित और प्रतिहारी के प्रति राजा के ही तरह व्यवहार करना चाहिए । " पुकारते ही जो 'आप बहुत जीएं' यह कहता हुआ उत्तर देता है और जिस कार्य में चतुराई लगती है, उस कार्य को निशंक नीति से करता है, वह राजा का प्रेमपात्र होता है ।
" अपने मालिक की कृपा से मिले धन का उपयोग जो सुपात्रों में करता है, और अच्छे कपड़े पहनता है, वह राजा का प्रिय पात्र होता है।
“अन्तःपुरवासियों और राजस्त्रियों के साथ जो गुप्त सलाह नहीं करता, वह राजा का प्रियपात्र होता है । " जुए को जो यमदूत के समान मानता है, के समान और स्त्रियों को असुन्दरी के राजा का प्रिय पात्र होता है ।
मदिरा को भयंकर विष
समान मानता है, वह
"जो लड़ाई के समय सदा राजा के आगे-आगे रहता है और नगर में पीछे-पीछे चलता है तथा रात्रि में महल के दरवाजे पर बैठा रहता है, वह राजा का प्रिय पात्र होता हैं ।
"मैं हमेशा राजा की राय से सहमत हूँ, ऐसा मानकर संकटों में भी जो अपनी मर्यादा को नहीं लाँघता, वह राजा का प्रिय पात्र होता है ।
"जो मनुष्य द्वेषियों से द्वेष करता है, और इष्टों का मनचाहा काम करता है, वही राजा का प्रियपात्र होता है ।
"मालिक के कहने का कभी भी उलटा जवाब नहीं देता, न उसके