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पञ्चतन्त्र
आज्ञा लेकर अपने घर की ओर गया। वहां अपने घर में घुसे जलचर के साथ युद्ध करके उसे मारकर वह सुख से रहने लगा । अथवा ठीक ही कहा है कि
“बिना पुरुषार्थ के मिली हुई लक्ष्मी अगर सुखपूर्वक भोगी जा रही है तो उससे क्या ? भाग्यवश मिली हुई घास तो बूढ़ा बैल भी खा लेता है ।"