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पञ्चतन्त्र
डरे हुए बाघ ने कहा, "अरे भांजे ! मेरी जान बचा, तू सिंह के आने के बहुत देर बाद तक भी मेरी बात मत कहना।" यह कहकर वह भाग गया।
बाघ के चले जाने पर एक चीता आया। उसे भी देखकर सियार ने सोचा, “यह चीता मजबूत दाँतों वाला है। इसके द्वारा हाथी का चमड़ा चिरे, ऐसा मैं करूंगा।" यह निश्चय करके उसने चीते से कहा, “अरे भाँजे! तू इतने दिनों के बाद क्यों दिखलाई दिया? तू भूखा-सा लगता है । तू मेरा मेहमान है। सिंह से मारा गया यह हाथी यहां पड़ा है। उसकी आज्ञा से मैं इसकी रखवाली कर रहा हूं। जब तक सिंह न आवे इसी बीच तू इस हाथी का मांस खाकर और तृप्त होकर भाग जा।" उसने कहा, “मामा! अगर यही बात है तो मुझे मांस खाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जीने पर तो सैकड़ों सुख मिलते हैं। कहा है कि
"जो खाया जा सके, जो खाने के बाद पचे, और पचने के बाद गुणकारक हो, वही अपनी भलाई चाहने वाले आदमी को खाना
चाहिए। इसलिए वही खाना चाहिए जो खाने लायक हो; इसलिए मैं यहां से भागता हूं।"सियार ने कहा, 'अरे अधीर! तू निश्चिन्त होकर खा, उसके आने की खबर मैं दूर से ही दे दूंगा।" उसके ऐसा कहने पर चीते ने हाथी के चमड़े को चीर दिया । यह जानकर सियार ने कहा, "अरे भांजे ! तू भाग, सिंह आ गया।" यह सुनकर चीता जान लेकर भागा। उसके किये हुए छेद से जब तक वह मांस खाये तब तक क्रोध से भरा हुआ एक दूसरा सियार वहां आ गया। उसे अपने बराबरी का जानकर पहले वाले सियार ने यह श्लोक पढ़ा
"अच्छे लोगों से झुककर, वीर को भेद से, नीच को थोड़ा दे-लेकर __ और बराबर ताकत वाले को पराक्रम से जीतना चाहिए।"
बाद में उसने उसे अपने तेज दांतों से चीरकर भगा दिया और बहुत दिनों तक हाथी का मांस खाता रहा। . इसलिए तू अपने सजातीय दुश्मन को लड़ाई में हराकर भगा दे, नहीं