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लब्धप्रणाश
लब्धप्रणाश नाम का चौथा तंत्र आरम्भ होता है । उसका यह पहला श्लोक है --
"काम आ जाने पर जिसकी बुद्धि छीजती नहीं, वह पानी में गए
बन्दर की तरह आपत्ति पार कर जाता हैइस बारे में ऐसा सुनने में आता है --
किसी समुद्र के किनारे जामुन का हमेशा फलने वाला एक बड़ा पेड़ था। उस पर रक्तमुख नामक बन्दर रहता था। पेड़ के नीचे एक समय करालमुख नाम का मगर समुद्र से निकलकर कोमल बालू से भरे तीर पर बैठ गया । रक्तमुख ने उससे कहा , “आप अतिथि हैं इसलिए मेरे द्वारा दिये गए अमृततुल्य जामुन आप खाएं । कहा भी है ---
"वैश्वदेव के बाद आया अतिथि प्रिय हो अथवा अप्रिय, मूर्ख
हो अथवा पंडित, वह स्वर्ग की गति देता है। "मनु ने कहा है-वैश्व देव के वाद और श्राद्धों में आये हुए अतिथि
के चरण, गोत्र, विद्या और कुल नहीं पूछे जाते । " दूर रास्ता चलकर आने के श्रम से थके हुए तथा वैश्वदेव के बाद
आये हुए अतिथि की जो पूजा करता है, उसे स्वर्ग मिलता है। " जिसके घर से बिना पूजा के उसाँस भरता हुआ अतिथि वापस