________________
२०३
काकोलूकीय
सूना दिखलाई देता है। " पतिव्रता, पति को प्यार करने वाली, सदा पति का हित चाहने वाली ऐसी जिसकी पत्नी है वह आदमी इस संसार में धन्य है। "घर, घर नहीं है, घरनी को ही घर कहते हैं। बिना घरनी के
घर वन के समान है। " अपने पति की यह दुख-भरी वाणी सुनकर और उससे सन्तुष्ट
होकर पिंजड़े में बंद कबूतरी ने कहा, "उसे स्त्री ही नहीं मानना चाहिये जिससे उसका पति संतुष्ट न
हो। स्त्रियों के पति के प्रसन्न होने पर सब देवता प्रसन्न होते हैं। "बन की आग से जली हुई पुष्पित लता के समान वह स्त्री
जल जाती है जिसका पति उससे खुश नहीं रहता। "पिता, भाई और पुत्र किसी हद तक ही देते हैं। वेहद देने वाले
पति की कौन स्त्री पूजा नहीं करती?" उसने फिर कहा"हे कांत ! तुम्हारे हित की जो वात मैं कहती हूं उसे सुनो।
तुम अपने प्राणों से भी शरणागत की हमेशा रक्षा करो। "यह बहेलिया ठंड और भूख से दुखी होकर तुम्हारे घर का ‘सहारा लेकर सो रहा है, इसकी तुम खातिर करो। सुना गया है. “संध्या समय आये हुए अतिथि की जो अपनी सामर्थ्य के अनुसार
पूजा नहीं करता वह उसे अपना पाप देकर उसका पुण्य ले लेता है। " तुम उसके साथ इसलिए द्वेष मत करो कि उसने तुम्हारी प्यारी को फंसा लिया है, क्योंकि मैं अपने किये हुए प्राचीन कर्मों के बंधनों से ही जकड़ी गई हूं। 'गरीबी, बीमारी, दुख, बंधन और आफतें ये सब प्राणियों के अपने किए हुए अपराध के पेड़ के फल हैं।