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पञ्चतन्त्र
इसलिए मैं कहता हूं कि बहुतों का विरोध नहीं करना चाहिए, समूह दुर्जय होता है फुफकारते हुए सर्पराज को भी चींटियां खा जाती हैं।
इसलिए इस विषय में मुझे जो कुछ कहना है, उसे सुनकर वैसा ही करो ।” मेघवर्ण ने कहा, "आप आज्ञा दीजिए। आपकी आज्ञा के सिवाय मैं कुछ न करूंगा ।” स्थिरजीवि ने कहा, "वृत्स ! साम आदि उपायों को छोड़कर जो मैंने पांचवा उपाय ठीक किया है उसे सुनकर मुझे दुश्मन का आदमी जानकर कठोर वचनों से मेरा तिरस्कार कर । शत्रु पक्ष के जासूसों के विश्वास के लिए कहीं से लहू लाकर मेरे शरीर में पोत दे, फिर मुझे वृक्ष के नीचे फेंककर ऋष्यमूक पर्वत की तरफ चला जा । अच्छी तरह बनाई हुई तरकीब से शत्रुओं में विश्वास पैदा करके उन्हें अपनी ओर राजू करके जब तक मैं उनके किले के बीच के भाग को जानकर दिन में अंधे बने उल्लूओं का नाश करूं तब तक तू परिवार के साथ वहीं रहना । मैंने अपना काम ठीक-ठीक जान लिया है। इसके सिवाय काम ठीक उतरने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है। बाहर निकलने के मार्ग के बिना दुर्गं तो केवल नाश का कारण बन जाता है । कहा भी है कि " बाहर निकलने के रास्ते के सहित किले को ही नीति - शास्त्र जानने वाले दुर्ग कहते हैं । बिना ऐसे रास्ते का दुर्ग तो दुर्ग के रूप में कैदखाना ही है । मेरे ऊपर तुझे दया करने की कोई जरूरत नहीं है । कहा भी है-“प्राणों की तरह प्रिय तथा लालन-पालन किये हुए सेवकों को भी लड़ाई आने पर सूखे ईंधन की तरह मानना चाहिए ।
" कवल एक दिन के लिए शत्रु के साथ होने वाली लड़ाई के लिए सदा सेवकों की अपने प्राण की तरह रक्षा करनी चाहिए, और अपने शरीर की तरह उनका पालन-पोषण करना चाहिए । इसलिए इस बारे में तू मुझे मत रोक । यह कहकर स्थिरजीवि उसके साथ बनावटी कलह करने लगा । इस पर उसके दूसरे सेवक उसकी
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