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पञ्चतन्त्र
और जल्दी से अपन नगर की ओर चल पड़ा। इस तरह से जब वह जा रहा था तो तीन भूखे धूर्त उसके सामने आये। उन्होंने ऐसा मोटा-ताजा पशु कंधे पर लदा देखकर आपस में चुपके से कहा , “अरे ! इस पशु को खाकर हम आज इस ठंडक को व्यर्थ बना सकते हैं, इसलिए इस ब्राह्मण को ठगकर और पशु लेकर ठंडक से हम अपनी रक्षा करेंगे।"
उनमें से एक अपना भेष बदलकर और दूसरे रास्ते से सामने आकर उस अग्निहोत्री से कहने लगा , "अरे मूर्ख अग्निहोत्री ! किसलिए तू जन-विरुद्ध और हँसी कराने वाला काम कर रहा है ? इस अपवित्र कुत्ते को कंधे पर बैठाकर क्यों लिये जा रहा है ? कहा है कि
"कुत्ता, मुर्गा और चांडाल तथा विशेष कर गदहा और ऊंट, इन सबको समान स्पर्शवाला गिना गया है। इनके छूने का एक
समान ही दोष है। इन्हें नहीं छूना चाहिए ।" . इस पर उसने गुस्से से कहा , “अरे ! क्या तू अंधा है जो बकरे को कुत्ता बताता है ?" धूर्त ने जवाब दिया, "भगवन् ! आप क्रोध न कीजिए। अपनी राह पकड़िए । जैसा चाहे वैसा कीजिए।"
वह जंगल में थोड़ी दूर आगे बढ़ा था कि दूसरे धूर्त ने सामने आकर कहा , “अरे ब्राह्मण! बड़े दुःख की बात है। यह मरा हुआ बछड़ा अगर तुझे प्यारा भी है तो तुझे उसे कंधे पर चढ़ाना ठीक नहीं। कहा भी है--
"जो बुद्धिहीन मरे हुए आदमी अथवा पशु-पक्षियों का स्पर्श करता
है, उसकी शुद्धि पंचगव्य अथवा चान्द्रायण व्रत से ही होती है।"
इस पर उसने क्रोधित होकर कहा, “अरे क्या तू अंधा है, जो बकरे को मरा बछड़ा कहता है ?" उसने जवाब दिया, “भगवन् ! क्रोध मत करिए, मैंने अज्ञान से कहा है। जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करिए।" बाद में जब वह उस जंगल में कुछ आगे बढ़ा तो भेष बदले तीसरा धूर्त सामने आकर उससे कहने लगा , “अरे, यह ठीक नहीं है जो तू गधे को कंधे पर चढाकर लिये जा रहा है। फौरन उसे छोड़ दे। कहा भी है--
" जो आदमी जाने या अनजाने में गधे को छूता है उसे पाप के