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काकोलूकीय
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पुरुष है जो बिना कारण जहर खा ले ?
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'सभा में पंडित को कभी दूसरे की निन्दा नहीं करनी चाहिए । सच होते हुए भी ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए जो तकलीफ का कारण हो ।
" जो अपने सुहृद और करता है और पुनः बुद्धिमान है और वही यह कहकर कौआ भी अपनी जगह को चला गया । इसलिए हे वत्स ! हम लोगों के साथ उल्लुओं की पुश्त-दरपुश्त की दुश्मनी हो गई है |
मित्रों के साथ बारबार विचार-विनिमय अपनी बुद्धि से उसे काम में लाता है वह लक्ष्मी और यश का भागी होता है ।"
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मेघवर्ण ने कहा, “तात ! ऐसी हालत में हमें क्या करना चाहिए? " उसने कहा, "ऐसी हालत में छः गुणों से अलग एक मोटा उपाय है, उसे स्वीकार करके मैं स्वयं ही अरिमर्दन को जीतने के लिए जाऊंगा और दुश्मन को ठगकर उसे मारूंगा । कहा भी है
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'धूर्तों ने बकरे के बारे में जिस तरह ब्राह्मण को ठगा था उसी तरह अनेक प्रकार की बुद्धिवाले और सुविज्ञ मनुष्य अपने से अधिक बलवान शत्रु को भी ठग सकते हैं ।"
मेघवर्ण ने कहा, "यह कैसे ?” उसने जवाब दिया-
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तीन धूर्तों और ब्राह्मण की कथा
"किसी नगर में एक अग्निहोत्र मित्रशर्मा नाम का ब्राह्मण रहता था । एक समय माघ महीने में जब धीमी हवा चल रही थी और आकाश में घिरे हुए बादल धीमे-धीमे पानी बरसा रहे थे, उसी समय वह यज्ञ - पशु की भिक्षा मांगने किसी दूसरे गांव में गया और यजमान से भिक्षा मांगी - "हे यजमान ! आगामी अमावस्या को मैं यज्ञ कर रहा हूं, इस लिए मुझे एक पशु दो ।" इस पर उसने उसे शास्त्रोक्त एक मोटा जानवर दिया । बकरे को इधर-उधर भागता देखकर उसने उसे पीठ पर लाद लिया