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काकोलूकीय
१६१ का गूढ़ अर्थ नहीं जानते । श्रुति में कहा है कि अज से यज्ञ करना चाहिए । यहां अज का अर्थ बकरा नहीं है, पर सात वर्ष का पुराना चावल है । कहा भी है
'वृक्षों को काटकर , पशुओं को मारकर तथा लहू का कीचड़ करके जो आदमी स्वर्ग में जा सकता हो तो फिर नरक में कौन
जाता है ? इसलिए मैं तुम्हें खाऊंगा नहीं, पर तुम्हारी हार-जीत का फैसला मैं करूंगा। लेकिन बूढ़ा होने के कारण मैं दूर से ठीक-ठीक नहीं सुन सकता। यह जानकर मेरे पास आकर तुम अपनी फरियाद कहो, जिससे विवाद का कारण जानकर मैं उसका ऐसा फैसला दूं कि जिससे परलोक में मेरी दुर्गति न हो। कहा है कि
"जो पुरुष अभिमान से, लोभ से, क्रोध से अथवा भय से झूठा न्याय
करता है, वह नरक में जाता है । 'घोड़े के बारे में झूठी गवाही देने वाले को एक प्राणी की हिंसा का पाप लगता है, गाय के बारे में झूठी गवाही देने वाले को दस प्राणियों के हिंसा के बराबर पाप लगता है , कन्या के बारे में झूठी गवाही देने वाले को सौ प्राणियों के मारने का पाप लगता है,
और पुरुष के बारे में झूठी गवाही देने वाले को हजार प्राणियों की हिंसा का पाप लगता है। "सभा के बीच में बैठकर जो साफ बातें नहीं कहता, उसे दूर से ही छोड़ देना चाहिए । अथवा उसे जल्दी से अपना फैसला देना
चाहिए। इसलिए तुम मेरा विश्वास करके अपनी लड़ाई के बारे में मेरे कानों में कहो।" अधिक क्या कहूं, उस नीच बिल्ले ने उन दोनों बेवकूफों का इतना विश्वास पा लिया कि वे दोनों उसकी गोद में बैठ गए । बाद में उसने एक को अपने पंजे से दूसरे को दांत रूपी आरी से पकड़ लिया और उनके मरने पर वह उन्हें खा गया ।