________________
काकोलूकीय
१७३ जाने वाले की तरह कम नहीं होती।
"अपने प्राण को संशय में जानकर अनार्य के साथ भी संधि करनी
चाहिए। प्राणों की रक्षा करने से ही सबकी रक्षा होती है। ' "जो शत्रु सत्यवादी, धार्मिक, आर्य, भाई-बंधु वाला , बलवान
तथा वहुतों पर विजय करने वाला हो तो उसके साथ संधि करनी
चाहिए।
बहुत सी लड़ाइयों में फतह पाने वाले के साथ तो खास करके हमें सुलह करनी चाहिए। कहा है कि
''अनेक लड़ाइयों में कामयाबी के साथ जो मेल करता है, उसके
वश में उसके प्रभाव से शत्रु जल्दी से आ जाते हैं। "बृहस्पति ने कहा है कि अपने बराबर वाले के साथ भी संधि करने
की इच्छा करनी चाहिए। क्योंकि लड़ाई में विजय संदिग्ध होती है, इसलिए-शंका युक्त कोई काम नहीं करना चाहिए। "युद्ध करने वालों की विजय हमेशा संदेह में रहती है, इसलिए तीन उपाय (साम, दाम और भेद) आजमाने के बाद ही युद्ध करना चाहिए। ''अभिमान से जो अंधा बनकर अपने समान वाले के साथ मेल
नहीं करता, वह उसके आक्रमण से, कच्चे घड़ों की टक्कर की तरह, दोनों का नाश करता है। ''कमजोर की बलवान के साथ लड़ाई उसकी मृत्यु का कारण बनती है। पत्थर जब तक घड़े को फोड़ नहीं डालता, तभी तक वह घड़ा रहता है। उसी प्रकार बलवान कमजोर को जब तक नहीं मार पाता, तभी तक कमजोर रह सकता है। और भी ''जमीन, मित्र और सोना ये लड़ाई के तीन कारण हैं । इनमें से एक
भी अगर कारण नहीं हो तो लड़ना नहीं चाहिए। "पत्थर के ढोकों से भरा हुआ चूहे का बिल खोदते हुए सिंह के नाखून