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पञ्चतन्त्र
“जो आलसी स्वतंत्रता से बढ़ते हुए अपने शत्रु और रोग की उपेक्षा करता है, वह उनसे धीरे-धीरे मारा जाता है ।
और भी
"जो पैदा होते ही शत्रु और रोग को नष्ट नहीं कर देता, वह जोरदार होने पर भी शत्रु और रोग बढ़ने से मारा जाता है ।" एक दिन कौओं के राजा ने अपने सब मंत्रियों को बुलाकर कहा, “हमारा शत्रु उत्कट, उद्यमी और समय जानने वाला है, इसलिए वह हर रात आकर हमें मारता है। इसका प्रतिकार कैसे करना चाहिए ? हम रात को देख नहीं सकते, और उसका किला कहां है यह भी हम नहीं जानते, जिससे वहां जाकर उस पर आक्रमण कर सकें । इसलिए संधि, विग्रह, यान, आसन, संश्रय और द्वैधी भाव इनमें से किस उपाय का यहां प्रयोग करना चाहिए ?" उसके मंत्रियों ने जवाब दिया, "देव ने यह सवाल ठीक ही किया है। कहा है कि
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"बिना पूछे सचिव को कुछ न कहना चाहिए, पर पूछने पर उसे हित की बात चाहे वह प्रिय लगे अथवा अप्रिय फौरन कहनी चाहिए । पूछने पर भी जो परिणाम में हितकारी बात नहीं कहता, केवल मीठा बोलता है, वह मंत्री नहीं शत्रु है ।
हे राजन् ! एकांत में बैठकर हमें सलाह-मशविरा करना चाहिए, जिससे हम उसके आक्रमण का कारण खोजकर उसके बारे में निर्णय कर सकें ।”
इस मेघवर्ण के पांच खानदानी मंत्री थे, जिनके नाम उज्जीवि, संजीवि, अनुजीवि, प्रीति और चिरंजीवि थे । सबसे पहले उसने उज्जीवि से पूछा, “भद्र ! इस स्थिति में तेरा क्या विचार है ?” उसने कहा, "राजन् ! बलवान के साथ लड़ाई नहीं करनी चाहिए। वह बलवान और समय पर वार करने वाला है । कहा भी है कि
" समय पर बलवान को प्रणाम करने वाले और समय देखकर उस पर वार करने वाले की सम्पत्ति नदियों में बहाव के विरुद्ध