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पञ्चतन्त्र अप्रियं किन्तु हितकारी बातें कहने वाले और सुनने वाले इस संसार में दुर्लभ हैं । इस संसार में जो अप्रिय होते हुए
भी हितकारी बातें कहते हैं वे ही असल मित्र हैं, दूसरे तो केवल ... नाममात्र के मित्र हैं।"
वे आपस में बातचीत कर ही रहे थे कि इतने में शिकारी से डरा हुआ चित्रांग नामक मृग भी उसी सरोवर पर आ पहुंचा। उसे घबराहट में आता देखकर लघुपतनक तो पेड़ पर चढ़ गया, हिरण्यक सरपत में घुस गया और मंथरक तालाब में। बाद में लघुपतनक ने अच्छी तरह से मृग को देखकर मंथरक से कहा, "निकल आओ मित्र मंथरक, यह तो प्यास से पीड़ित मृग तालाब में घुस गया है। यह शब्द उसका है मनुष्य का नहीं।" यह सुनकर मंथरक ने देश और काल को जानते हुए कहा, "हे लघुपतनक ! गहरी सांस लेता हुआ तथा चंचला दृष्टि से पीछे देखता हुआ यह मृग निश्चय ही प्यासा नहीं है, पर शिकारी से डरा हुआ है। इसलिए इसका पता लगाओ कि इसके पीछे शिकारी आ रहे हैं अथवा नहीं। कहा भी है. "भय से डरा हुआ मनुष्य घड़ी-घड़ी जोर की सांस लेता है,
दिशाओं की ओर देखता है और कहीं शांति नहीं पाता।" यह सुनकर चित्रांग ने कहा, "हे मंथरक ! तुमने मेरे भय का कारण ठीक तरह से जान लिया है। मैं शिकारी के तीरों की मार से किसी तरह बचकर यहां आया हूं। इसलिए मुझ शरणागत को शिकारी जहां न पहुंच सके, ऐसी जगह बताओ।"
यह सुनकर मंथरक ने कहा, "हे चित्रांग ! नीति-शास्त्र सुन"दुश्मन को देखकर उससे बचने के दो उपाय कहे गए हैं-एक
हाथ चलाने का दूसरे पैर की तेजी का। इसलिए बदमाश शिकारी जबतक यहां आए तब तक तू गहरे जंगल में घुस जा।" उसी समय लघुपतनक ने जल्दी से आकर कहा, "अरे मंथरक ! वे शिकारी बहुत से मांस के लोथड़े लेकर घर की ओर