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मित्र-संप्राप्ति
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अलग, शूर, कृतज्ञ और गहरा प्रेमी, इन सब में लक्ष्मी स्वयं रहना चाहती है ।
धन मिलकर भी भाग्यवश नष्ट हो जाता है । इतने दिनों तक यह न तेरा था । जो वस्तु अपनी न हो वह एक क्षण भी भोगी नहीं जा सकती । अगर वह वस्तु स्वयं ही मिल गई हो तो भी भाग्य उसे हर लेता है ।
" घने वन में पहुंचकर सोमिलक जिस तरह दिशा भूल गया, उसी तरह धन पैदा करने के बाद भी ( अगर भाग्य में न हो तो) वह भोगा नहीं जा सकता । "
हिरण्यक ने कहा, "यह कैसे ?" मंथरक कहने लगा-
सोमिलक और छिपे धन की कथा
"किसी नगर में सोमिलक नाम का बुनकर रहता था । वह अनेक तरह के राजाओं के लायक रेशमी वस्त्र हमेशा तैयार करता था । अनेक तरह के रेशमी वस्त्र बुनने पर भी उसे भोजन- छाजन से अधिक धन नहीं मिलता था । पर मोटे कपड़े बनने वाले साधारण बुनकर काफी धनी हो गए थे । उन्हें देखकर उसने अपनी स्त्री से कहा, "प्रिये ! देखो इस सोने और धन से समृद्ध मोटे कपड़े बुनने वालों को ! मैं इस जगह अब नहीं रह सकता, इसलिए विदेश में कहीं धन कमाने जाता हूं।" वह बोली, "हे प्रियतम ! दूसरी जगह जाने से धन मिलता है और अपने स्थान पर नहीं मिलता, यह फिजूल की बात है । कहा है कि
"पक्षियों का आकाश में उड़ना अथवा जमीन पर उतरना भी पूर्व कृत-कर्म के फल से होता है। दैव के दिये बिना कोई चीज नहीं मिल सकती ।
उसी प्रकार
"जो नहीं होने वाला होता, वह नहीं होता। जो होने वाला होता है, वह बिना यत्न के होता है। जिसके होने की संभावना नहीं होती, वह हथेली में आने पर भी नष्ट हो जाता है ।