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पञ्चतन्त्र
निष्ठुर धन की रक्षा करने वाला पुरुष जब यमलोक में जाता है तब वह उसके पीछे पांच कदम भी नहीं जाता। और भी "जिस तरह मछलियों द्वारा जल में, हिंसक पशुओं द्वारा जमीन पर और पक्षियों द्वारा आकाश में मांस खाया जाता है, उसी प्रकार धनवान सब जगह नोचा जाता है । "धनवान के निर्दोष होने पर भी राजा उसे दूषित मानता है और निर्धन दूषित होने पर भी सब जगह बेखटके रह सकता है। "धन कमाने में दुःख है, कमाये हुए धन की रक्षा करने में भी दुःख है, उसके नाश होने और खर्च होने में भी दुःख है। इसलिए कष्ट
के आश्रय-रूप इस धन को धिक्कार है। ... "धन की इच्छा रखने वाला मूर्ख जितना कष्ट सहता है उसका
शतांश कष्ट भी अगर मोक्ष चाहने वाला सहन करे तो उसे मुक्ति
मिलनी चाहिए। विदेश में रहने से भी तुझे उदास नहीं होना चाहिए, क्योंकि धीर और बुद्धिशाली मनुष्य के लिए क्या देश क्या विदेश ? जिस देश में वह रहता है उसी देश के ऊपर अपने बाहुओं के प्रताप से वह विजय पाता है। सिंह जिस'वन में घुसता है उसी में अपने दांत, नख और पूंछरूपी शस्त्र से बड़े हाथियों को मारकर उनके रक्त से अपनी प्यास बुझाता है।
परदेश गया हुआ निर्धन मनुष्य भी अगर बुद्धिमान हो तो किसी तरह दुःख नहीं पाता। कहा है कि
"समर्थों के लिए बडा बोझा क्या है ? व्यापारियों के लिए दूरी
क्या है ? विद्वानों के लिए विदेश क्या है और मीठा बोलने वालों .. के लिए पराया क्या है ?
और फिर, तू तो बुद्धि का भांडार है, साधारण आदमियों की तरह नहीं । अथवा ... "उत्साह-सम्पन्न, देरी न करने वाला, क्रिया-कुशल , व्यसनों से