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पञ्चतन्त्र
परम-स्थान और विपत्ति का आश्रय-स्थान बन जाता है। "जिसके पास कौड़ियां नहीं उससे बंधुगण लज्जा पाते हैं और उसके साथ का सम्बन्ध छिपाते हैं तथा उसके मित्र शत्रु बन जाते हैं। "निर्धनता प्राणियों के लिए मरण का पर्याय है, छोटपन की मूर्ति है और विपत्तियों का आश्रय-स्थान है। "घबराये हुए मनुष्य बकरी के पैर की धूल की तरह, झाड़ की धूल की तरह और दीपक के प्रकाश में पड़ती हुई खाट की छाया की तरह गरीब का त्याग करते हैं। "हाथ-पैर धोने की मिट्टी से भी कुछ काम होता है, पर निर्धन
मनुष्य का तो कोई प्रयोजन ही नहीं होता। . अगर निर्धन कुछ देने की इच्छा से भी धनिकों के घर पहुंच जाय
तो 'यह भिखमंगा है', ऐसा मानने में आता है । प्राणियों की दरिद्रता को धिक्कार है।
"अगर धन ले जाने में मेरी मृत्यु भी हो जाय तब भी ठीक है । कहा है कि
"अपना धन चोरी जाते देखकर जो आदमी अपने प्राणों की रक्षा
करता है, उसके द्वारा अर्पित तर्पण को पितर स्वीकार नहीं करते। उसी प्रकार,
"गाय के लिए, ब्राह्मण के लिए, स्त्री तथा धन चोरी जाते हुए तथा युद्ध में जो अपना प्राण देता है उसे अक्षय लोकों की प्राप्ति होती है।" इस तरह निश्चय करके रात में वहां जाकर उसके सो जाने पर मैंने पेटी में छेद किया । पर इतने में ही वह दुष्ट तपस्वी जाग गया और अपने फटे बांस की मार से मेरा सिर फोड़ डाला । मेरी कुछ उमर बच गई थी, इसलिए मैं वहां से निकल सका और मरा नहीं। कहा भी है कि
"मनुष्य मिलनेवाले धन को पाता है, देवता भी उसे ऐसा करने . ... ... से रोक नहीं सकते । इसीलिए मैं शोक नहीं करता। जो मेरा