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पञ्चतन्त्र की तरह हो गया है। ___ अब तुम बेखटके सो जाओ। उसके कूदने का जो कारण था, वह अपने हाथ में आ गया है । अथवा ठीक ही कहा है--
"दांत अलग होने से सांप और मद के बिना हाथी की तरह इस संसार में धन के बिना पुरुष नाम-मात्र का ही पुरुष है।"
यह सुनकर मैं मन में सोचने लगा, “मुझमें एक अंगुल भी कूदने की ताकत नहीं रह गई ह, इसलिए धनहीन पुरुषों के जीवन को धिक्कार है। कहा है कि
"बिना धन के थोड़ी बुद्धि वाले पुरुष की सब क्रियाएं गरमी
की छोटी नदियों की तरह नष्ट हो जाती हैं। "जिस तरह काकयव और वन में पैदा होने वाले तिल नाम मात्र ही के जौ और तिल हैं, उनसे काम नहीं चलता, उसी प्रकार निर्धन पुरुष को भी समझना चाहिए। "गरीब आदमी में सब गुण हों तो भी वे शोभा नहीं पाते। जिस तरह सूर्य प्राणियों को प्रकाश देता है, उसी तरह लक्ष्मी गुणों
को प्रकाशित करती है। "सुख में पला हुआ मनुष्य धन पैदा करने के बाद उससे बिलग होते हुए जितना दुखी होता है उतना दुखी जन्म से ही निर्धन मनुष्य नहीं होता। "सूखे कीड़ों से खाए हुए , आग से चारों ओर जले हुए तथा ऊसर में खड़े हुए वृक्ष का जन्म अच्छा है, पर मांगने वालों का नहीं। "प्रतापरहित दरिद्रता चारों ओर खटके का कारण बन जाती है। गरीब आदमी अगर उपकार करने भी आया हो तो लोग उसे
छोड़कर चले जाते हैं। "गरीब आदमी के मनोरथ ऊंचे बढ़-बढ़ कर, विधवा स्त्री के
स्तनों की तरह बाद में , हृदय में विलीन हो जाते हैं। "इस संसार में हमेशा गरीबी के अंधेरे से घिरा हुआ आदमी दिन