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________________ १४० पञ्चतन्त्र भील, सूअर और सियार की कथा "किसी वन में एक भील रहता था । वह शिकार करने के लिए वन की ओर चला । फिरते-फिरते उसने काजल के पहाड़ की चोटी की तरह एक सूअर देखा । उसे देखकर कान तक खींचे हुए तीखे बाण से भील ने उसे घायल कर दिया । सूअर ने भी क्रोधित होकर बाल-चन्द्र जैसे कांति वाले अपने दांत की नोक से उसका पेट फाड़ डाला और भील मरकर जमीन पर गिर पड़ा । शिकारी को मारकर सूअर भी लगे हुए तीर की वेदना से मर गया। इसी बीच में जिसकी मौत आ गई थी ऐसा सियार भूख से पीड़ित होकर इधर-उधर भटकता हुआ उस प्रदेश में आ पहुंचा । जब उसने सूअर और भील दोनों को देखा तब वह प्रसन्न होकर सोचने लगा, “अरे ! भाग्य मेरे अनुकूल है, इसलिए बिना सोचे हुए यह भोजन मेरे सामने आ गया है । अथवा ठीक ही कहा है- "उद्यम न करने पर भी दूसरे जन्म में किये हुए कार्यों का शुभ अथवा अशुभ फल मनुष्यों को दैवयोग से मिलता है । उसी तरह " जिस देश में काल में और वय में शुभ अथवा अशुभ काम किया गया हो, उसका उसी तरह भोग करना पड़ता है । इसलिए मैं ऐसे खाऊंगा जिससे बहुत दिनों तक मेरा गुजारा हो । पहले तो मैं धनुष के छोरों पर लगी हुई तांत की डोरी खाऊंगा। कहा भी है कि इस तरह मन में निश्चय में लेकर तांत खाने में वह लग उसके तलवे को फोड़ता हुआ "बुद्धिमान पुरुषों को स्वयं पैदा किये हुए धन को रसायन की तरह धीरे-धीरे खाना चाहिए, जल्दी नहीं करनी चाहिए ।" करके धनुष की टेढ़ी छोर अपने मुख गया । पर फंदे के टूटने से धनुष का छोर मस्तक के बीच से निकल गया और उस चोट से वह फौरन मर गया । इसलिए मैं कहता हूं कि अत्यन्त लालच नहीं
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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