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पञ्चतन्त्र
मुझसे कहा,“स्वामी ! मठ में चूहों के भय से पका हुआ अन्न भिक्षा-पात्र में सदा खूटी से लटका रहता है, जिससे हम उसे नहीं खा सकते हैं। स्वामी के लिए कोई वस्तु अगम्य नहीं है, फिर इधर-उधर फिजूल भटकने से क्या फायदा ? आज आप की कृपा से हम वहां जाकर मनमाना अन्न खायेंगे।" यह सुनते ही सदलबल मैं उसी समय वहां पहुंचा, तथा कूद कर उस भिक्षा पात्र पर चढ़ गया । बहुत सी खाने की चीजों को अपने सेवकों में बांटकर मैंने स्वयं भी खाया। सबके तृप्त हो जाने पर हम सब घर लौट आये। ___ इस तरह रोज मैं उसका अन्न खाता था। परिव्राजक भी भरसक उनकी रक्षा करता था। पर जैसे ही वह सोने लगता था, मैं वहां जाकर अपनी जैसी कर लेता था। ___ बाद में मुझे रोकने के लिए उसने एक दूसरी तरकीब रची और उसके लिए, वह एक फटा बांस लाया । सोते हुए भी मेरे भय से वह बांस से भिक्षा-पात्र ठकठकाता रहता था। मैं भी बिना अन्न खाए हुए मार के डर से भागता था। इस तरह उसके साथ सारी रात मेरी लड़ाई कलती रहती थी।
एक बार उसके मठ में बृहत्स्फिक नाम का उसका मित्र परिव्राजक . तीर्थ यात्रा के प्रसंग में अतिथि होकर आ गया। उसे देखकर तामचूड ने उसकी आवभगत की और अतिथि-क्रिया से उसका सत्कार किया। बाद को रात में वे दोनों एक कुश की चटाई पर लेटकर धर्म-कथा कहने लगे। चूहे के डर से घबराया हुआ तामचूड फटे बांस से भिक्षा-पात्र ठकठकाते हुए बृहत्स्फिक् की कथा-वार्ता का कोरा जवाब देता था और भिक्षा-पात्र की तरफ ध्यान होने से कुछ बोलता न था। इस पर अभ्यागत ने अत्यन्त क्रोधित होकर उससे कहा , “तामचूड ! तू मेरा सच्चा मित्र नहीं है, यह मैंने जान लिया। इसीलिए हंसी-खुशी से तू मुझसे बातचीत नहीं करता। मैं इसी रात तेरा मठ छोड़कर दूसरे किसी मठ में चला जाऊंगा। कहा है कि
"'आइए', 'पधारिए', 'विश्राम कीजिए', 'यह आसन है', 'क्यों बहुत दिनों के बाद दिखलाई दिए?' 'क्या समाचार है ?' 'बडे दुर्बल