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पञ्चतन्त्र
जाऊं।" हिरण्यक ने कहा, “उडने के उन तरीकों का नाम मैं सुनना चाहता हं।" उसने कहा
"सम्पात ( धीरे से सीधा उड़ना ), विप्रपात (एकाएक उड़ना), महापात (जोर से उड़ना ), निपात (उड़ते हुए नीचे आना),वक्रपात (टेढ़े-मेढ़े उड़ना),तिर्यक पात (तिरछे उड़ना),ऊर्ध पात (ऊंचे
उड़ना) और लघुपात (चपलता से उड़ना),ये उड़ने के तरीके हैं।" यह सुनकर हिरण्यक उसी क्षण कौए पर सवार हो गया। कौआ भी धीरे-धीरे उसे लेकर,सम्पात गतिसे उड़ते हुए क्रम से उस तालाब पर पहुंचा। बाद में चूहेको सवार कराये लघुपतनक को देख कर, यह कोई अजीब क.अ. है, यह मानकर देश-काल को जानने वाला मंथरक जल्दी से पानी में घुस गया । लघुपतनक भी किनारे के वृक्ष के खोकले में हिरण्यक को रखकर उसकी एक शाख पर बैठकर ऊंचे स्वर से कहने लगा, “अरे मंथरक, आ ! आ ! मैं लघुपतनक नामक तेरा काग-मित्र बहुत दिनों के बाद तुझसे मिलने की उत्कंठा से आया हूं। तूं आकर मुझ से भेंट कर । कहा है कि
"कपूर मिले हुए चन्दन से क्या ? ठंडे बरफ से क्या? ये सब मित्र के देह की (भेंट से मिली ठंडक) के सोलहवें भाग के भी बराबर नहीं। और भी "मित्र, इन अमृत-रूपी दो अक्षरों को, जो आपत्तियों से रक्षा करते हैं. और शोक और संताप की औषध स्वरूप हैं।" किसने बनाया ?"
यह सुनकर लघुपतनक को अच्छी तरह से पहचानकर पानी के बाहर निकलकर रोमांचित शरीर तथा आनन्द के आंसुओं से भरी आंखों से मंथरक बोला, “आओ ! आओ मित्र! मुझसे भेंटो। बहुत समय बीत जाने से मैंने तुम्हें ठीक-ठीक नहीं पहचाना, इसी से पानी के अन्दर घुस गया था। कहा है कि
"जिसका पराक्रम, कुल और आचार के विषय में कुछ पता न हो