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पञ्चतन्त्र
तोड़ा जा सकता है, पर सहज ही में जोड़ा जा सकता है । "ईख के ऊपरी पोर से नीचे जैसे क्रमशः अधिक रस बढ़ता जाता है, उसी तरह सज्जन की मित्रता है जो विपरीतों के प्रति विपरीत होती है। और भी "आरम्भ में बड़ी और क्रम से छीजने वाली , पहले छोटी और फिर बढ़ने वाली, दिन में सबेरे और दोपहर की छाया के
समान खल और सज्जनों की मित्रता होती है। मैं सज्जन हूं फिर भी कसम खाकर तुझे निर्भय कर दूंगा।" उसने कहा, “मुझे तेरी कसमों का विश्वास नहीं है। कहा है कि
"दुश्मन के साथ अगर कसम खाकर भी सुलह की गई हो, फिर भी उसका विश्वास नहीं करना चाहिए। मित्रता की कसम खाने के बाद भी इन्द्र ने वृत्रासुर को मार डाला। "देवता भी बिना विश्वास पैदा किये हुए शत्रु को वश में नहीं कर सकते। विश्वास का लाभ उठाकर इन्द्र ने दिति के गर्भ को चीर डाला था। और भी "जो अपनी उन्नति, जिंदगी और सुख की इच्छा करता हो ऐसे
बुद्धिमान पुरुष को बृहस्पति का भी विश्वास नहीं करना चाहिए। और भी ''पानी का वेग धीरे-धीरे नाव में रसकर जैसे उसे डुबा देता है,
उसी तरह अत्यन्त पतले छेद से भी भीतर घुसकर शत्रु नाश करता है। "अविश्वासी का विश्वास नहीं करना चाहिए और विश्वासी का भी बहुत विश्वास नहीं करना चाहिए। विश्वास से उत्पन्न भय जड़ों को ही काट देता है। "अविश्वासी दुर्बल को बलवान मार नहीं सकता। पर बलवान
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